आँख में कंकड़ सा
चुभा था कुछ उस दिन
बस आंख मसली और लगा
निकल गया
क्या पता था
आँख का कंकड़ अब
पत्थर बन पूरे शरीर को छील देगा
खूब रगडा मसला भी
खुद को
पर पत्थर ने पूरे
शरीर के साथ साथ आत्मा को भी पथरा डाला
वो कंकड़ कुछ साल
पहले आँखों में खूब पानी भर गया था
और आज पत्थर बन
आँखों की झील को सुखा गया
कुछ पल के लिए एक
एहसास दे गया था नाज़ुक सी इन आँखों में दर्द का
और अब दर्द बन इन
आँखों में ही बस गया
कोशिश हज़ार की , कि
निकल जाए मेरी आँखों से अब और न सुजाये
पर अब तो आँखें पथरा
गयी और कंकड़ पत्थर बन गया
मसलते मसलते न जाने
कितने साल यूँ ही गुज़र गए
पर इसके पत्थर हो
जाने का एहसास आज हुआ
जब कोशिश की दो बूँद
निकले
तो आँखें भी धोखा दे
गयी
बारिश सी बरसती थी
जो आँखें
आज अकाल पडी ज़मीं सी
सूखी पड़ी हैं
न दुखी हैं न सुखी
न आंसू गम के बहाती
न हंसी से बहती
मौसम बदले सावन से
पतझड़ तक
पर पथराई से इन
आँखों में पड़े कंकड़ ने कुछ मेहसूस ही न होने दिया
कुछ साल पहले जो
कंकड़ चुभा था आँखों में आज पत्थर बन बस गया !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!