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Friday 20 November 2015

कंकड़ पत्थर



आँख में कंकड़ सा चुभा था कुछ उस दिन
बस आंख मसली और लगा निकल गया
क्या पता था
आँख का कंकड़ अब पत्थर बन पूरे शरीर को छील देगा
खूब रगडा मसला भी खुद को
पर पत्थर ने पूरे शरीर के साथ साथ आत्मा को भी पथरा डाला
वो कंकड़ कुछ साल पहले आँखों में खूब पानी भर गया था
और आज पत्थर बन आँखों की झील को सुखा गया
कुछ पल के लिए एक एहसास दे गया था नाज़ुक सी इन आँखों में दर्द का
और अब दर्द बन इन आँखों में ही बस गया
कोशिश हज़ार की , कि निकल जाए मेरी आँखों से अब और न सुजाये
पर अब तो आँखें पथरा गयी और कंकड़ पत्थर बन गया
मसलते मसलते न जाने कितने साल यूँ ही गुज़र गए
पर इसके पत्थर हो जाने का एहसास आज हुआ
जब कोशिश की दो बूँद निकले
तो आँखें भी धोखा दे गयी
बारिश सी बरसती थी जो आँखें
आज अकाल पडी ज़मीं सी सूखी पड़ी हैं
न दुखी हैं न सुखी
न आंसू गम के बहाती न हंसी से बहती
मौसम बदले सावन से पतझड़ तक
पर पथराई से इन आँखों में पड़े कंकड़ ने कुछ मेहसूस ही न होने दिया
कुछ साल पहले जो कंकड़ चुभा था आँखों में आज पत्थर बन बस गया !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!

चूल्हा



चूल्हा जला और बुझा
धुंआ और आग दोनों को देखा
खिचड़ी पकी भी और खाई भी गयी
चूल्हा पुता भी
गोबर की लिपाई भी हुयी
शुद्ध कर रसोई कई बार बनायी भी
रोटी पकाई और खिलाई भी
धुंए ने आँखें जलाई भी
पेट की आग कई बार भुझायी भी
चूल्हे ने ज़रुरत थी पेट की समझाई भी
चूल्हा जला और बुझा
कईयों बार बस पुता हुआ चुप चाप सोया भी
फुंकनी की फूंक से बुझते बुझते बचा भी
गोबर के उपले भी मिले
कभी बस अखबार और कागज़ जले
दोनों पहर भी न जाने कितनी बार पकाया
कभी खाली बर्तन की खनक से सुलाया भी
चूल्हा जला और बुझा
आग भी देखी और धुंआ भी !!!!!!!!!!!

पहेली



पहेली जैसी ज़िन्दगी और सफ़र के ये अंधे मोड़
न जाने आगे किस से टकराना होगा
कोई बड़ी गाडी होगी या
कोई खाली अँधा मोड़ !!!!
कितनी पहेलियाँ होंगी और न जाने कितने हल
किसी खम्बे के नीचे बैठ के सोचूंगी
या किसी पुल के निचे से गुज़ुरुंगी
कोई सड़क सीधी भी होगी
या उन मोड़ो पर अंधी सी मैं खड़ी रहूंगी
ज़िन्दगी का हर मोड़ तो तय है
जैसे हर बस का सफ़र और मंजिल
पर रस्ते की खबर नहीं
कब कौन सा मोड़ कहाँ ले जाए और मंजिल कैसे मिल जाए
सच है
ज़िन्दगी एक पहेली ही तो है
जवाब पता होते हुए भी ढूंढना कठिन है
अंधे मोड़ों से भरा ये सफ़र ही तो है
जो शायद ले जा रहा है पहेली सुलझाने
और मैं भी चलती जा रही हूँ अंधी सी
कभी गुज़रती पुल से तो कभी थक के रुक जाती खम्बे के नीचे !!!!!!!!!!  नीलम !!!!!!!!!!!!!

ये पल



जानती हूँ ये जो एक एक पल है
नहीं लौटेगा कभी
और न ही लौटेगा तू कभी
तेरा एक बार वापस मुड जाना
छोड़ जाएगा अकेला मुझे
मैं फिर शायद चल पडू अकेली
पर हर ये पल जो तेरे साथ जीया है मैंने
याद आएगा मुझे हर घड़ी
खबर है मुझे तू हो जाएगा किसी और का जल्द ही
और मैं , मेरा होना शायद याद ही न रहे तुझे कभी
पर ये जो पल जी रही हूँ संग तेरे
क्या तू जी पायेगा उसके साथ कभी
कर पायेगा प्यार मुझ सा तुझे कोई कभी
या तू हो पायेगा किसी और का जैसे मेरा है अभी
मेरी ज़िंदगी का हर पल अब तेरा है
तेरा होना ही अब मेरा जीवन है
न जाने जब तू लौटेगा
मेरी साँसों का थमना कैसा होगा
हो सके तो न जाना तू
रोकूंगी नहीं ये भी जानता है तू
बस एक कोशिश करना
मेरे संग बीते हर पल को याद रखना
मैं उम्र भर रहूंगी तेरे आस पास
जब मन चाहे तू लौट आना
पायेगा खुद के लिए वही एहसास !!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!