मेरी सिगरेट
मेरी उँगलियों में
जल कर
मेरी उँगलियों में
ही बुझ जाती
मेरी सबसे प्रिय बन
लबों से भी टकरा जाती
और निराकार हो राख
बन झड़ जाती
मेरे दर्द में
मेरी ख़ुशी में
मेरे चिंतन में
हर बार मेरी
उँगलियों को गर्माहट दे जाती
तुम्हे बुरा भला सब
कहा
किसी ने कभी कभी न
कभी छुटकारा पाने को भी कहा
पर अंत होने कि
क्रिया को
तुझसे बेहतर कोई न
समझा पाया
तुम बुरी हो या भली
नहीं जानती
मुझे जीवित रखे हो
या नष्ट कर रही हो
नहीं समझ पाती
पर हाँ तुम हो तो कई
दर्द पी गयी
तेरे संग न जाने
कितने ही पल जी गयी
रात के घने अन्धकार
में
मेरी उँगलियों में
टिमटिमाती
न जाने तुम कितनी बातें
कर गयी
कातिल बन कर भी
तुम कई बार जीवन दान
बन गयी ............ नीलम ...........
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