सवालों का एक पोथा
है मुझ में, ख़तम ही नहीं होते , क्यूँ कब कैसे कहाँ कौन ???????ऐसा लगता है मानो
सब उल जलूल से मेरे अन्दर बवंडर की तरह नाच रहे हों... कहाँ से ढूँढू इनके जवाब?
कोई तो होगा ग्रन्थ या वेद, जो खोल सके इनके भेद हैरान हूँ..... परेशान भी , क्या
सिर्फ मुझ में हैं ये सवाल? किसी को नहीं देखा मैंने, न जाना जो चाहता हो क्यूँ कब
कैसे कौन कहाँ का जवाब. हर बात में तो आ जाते हैं , खड़े रहते हैं इंतज़ार में कहाँ
खोजूं , अब दिमाग और दिल भी हारे....पुछा कईयों से किये यही सवाल जवाब मिला , नहीं
होता कारण कुछ बातों का, न होते कोई जवाब.... पर ये सवाल अब ढीन्ठ हो गए हैं जाते
ही नहीं , खड़े रहते हैं और तकते हैं मुझे पूछते हैं फिर अपने जवाब..... कोई तो
होगा कोई गुरु कोई पंडित कोई मौलवी जो दे दे इनका जवाब, छोटी छोटी चीज़ों में भी आ
जाते हैं, मेरे होने पर भी खड़े हो जाते हैं.....अब क्या कहूँ क्या समझाऊं ? मैंने
ही तो जन्म दिए हैं .....न सो पाती हूँ न जाग , न जी पाती हूँ न दे पाती प्राण.. वहां
आकर भी तो रोक लेते हैं ,मानो बस खोज लेते हैं....फिर लेने मुझसे अपने जवाब, मैं प्रेम
करूँ या नफरत करूँ, तो “क्यूँ” खड़ा हो जाता है.... कर भी लूँ प्रेम करूँ किसी से
तो “कैसे” आ जाता है..... जाऊं दूर कहीं तो “कहाँ” बीच आ जाता है....चाहत रखूं चाहने
की तो “कौन” झाँकने लगता है .....जागना चाहूँ तो “कब” पहले ही उठा देता है.....अब
तो जाल बुन गया है चारों ओर ले जा रहा उस बिंदु की ओर जहाँ ख़त्म हो जाउंगी मैं पर
नहीं ख़त्म होंगे ये सवाल ...... !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!!!
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Wednesday 30 September 2015
Tuesday 29 September 2015
प्रेम अभिव्यक्ती
कहा था तुम्हे मेरी
हर अभिव्यक्ती और विचार में तुम आ गए हो , अपने तन के साथ साथ जब अपना मन भी
तुम्हे सौंप दिया था , यही सोचा था की शायद तुम शिला बन जाओगे मेरे हर विचार और
सोच को संभाल लोगे, पर तुम तो खुद ही डर गए, मैं बनना चाहती हूँ तुम्हारे लिए वो
स्तम्भ जिस से तुम्हारी ओर आती हुयी हर मुश्किल टकरा वापस चली जाए, मुझे ताकत बनाओ
अपनी कमजोरी नहीं, न मैं खुद कमज़ोर हूँ और न तुम्हे कभी होने दूंगी, शायद हम साथ
मिलकर एक मज़बूत इमारत को खड़ा कर सकें न की यादों का खंडर बन बिखर जाएँ.... इंसान
तुम भी हो और मैं भी गलती तुम भी करोगे और मैं भी, यही तो होंगे वो पल जब तुम मुझे
संभाल लोगे और मैं तुम्हारा हाथ और कस के थाम लुंगी, तुमने कहा तुम मेरे प्रेम के
काबिल नहीं, और मैं सोचती रह गयी कि प्रेम भी क्या काबिलियत या किसी प्रवेश
परीक्षा पर निर्भर करता है , क्या पहले परीक्षा लेनी पड़ेगी किसी को दिल में बसाने
के लिए, ये तो बस एक अभिव्यक्ती है इस चंचल मन की जो बिना कुछ सोचे समझे किसी के
लिए भी किसी भी वक़्त सामने आ सकती है, तुम काबिलियत को मत तोलो, बस इस प्रेम कि
शक्ति को अपनाओ और देखो कैसे हम दोनों उन परिंदों की तरह उड़ रहे होंगे दूर आकाश
में जहाँ कोई छु भी न सके...... नीचे से देख सब हमारी उंचाईयों तक आने कि कोशिश
करें , और हम बिना रुके अपनी उड़ानें भरते रहें...... !!!! नीलम !!!!!!!
मीरा
मीरा को न जाने क्या
सूझी ?कौन सी थी वो मजबूरी ....ज़हर का प्याला क्यूँ ले बैठी ? गर न आते मोहन ये
जान ....तो क्या ले लेती वो भी अपने प्राण???? शायद यही था मीरा का प्रेम, निस्वार्थ
सच्चा , ऐसा जैसे पानी का रंग.... मोहन ने न सोचा होगा, मीरा जैसा कोई होगा .....पर
मीरा मैं तुझ सी न बन पाई, तेरे मोहन जैसा नहीं है मोहन मेरा.... वो खुश है अपनी
रास लीला में .... ख्याल ही कहाँ होगा इस मीरा में ?
मेरे दुःख रहे हैं
अब नैन न पाया अब तक मैंने चैन, तुझ सा ही तो प्रेम किया था, प्राणों से भी ज्यादा
अपने...मोहन को पूजा भी दिल से..... रात दिन करती थी याद , एक झलक दिखला जा आज.....
उसने तो सुना ही नहीं, जान कर भी न पाया पहचान, मीरा तेरी भक्ति है अपार, पर मेरा
भी पूरा था प्यार...तू तो पा गयी कान्हा को , मैं कृष्णा को ढूढूं किस पार.... मोहन
तुझ संग रहते हैं, मन में मेरे भी बसते हैं.....फर्क है बस इतना तूने पाया विष में
अमृत और मैं दे बैठी अपने प्राण !!!!!! नीलम !!!!!!!
Monday 28 September 2015
प्रेम पत्र
----प्रेम पत्र -----
सुबह आँख खुली, तो
तेरी साँसों को अपने लबों से टकराते सुना, तेरा मासूम सा चेहरा मेरे चेहरे पर यूँ
रखा था मानो कोई बच्चा माँ से लिपट कर सो रहा हो, प्रेमिका की तरह रात भर तू मुझे
बाहों में ले सुला रहा था और अब सुबह मुझे लगा मानो मेरा प्यार ममता में बदल गया हो
, तुझे गले से लगा संभाल मैं ऐसे पड़ी थी मानो मेरा पूरा संसार बस इसी पल में सिमट
गया हो और तू भी सुकून से सो रहा था जैसे आज की नींद जीवन भर की थकान मिटा रही हो,
मन तो हो रहा था कि तुझे नींद से जगा फिर तेरी प्रेमिका बन जाऊं, पर ये सुबह शरारत
करने का मन ही नहीं हुआ, तेरी बंद आँखें मेरे प्यार को और मज़बूत बना रही थी, तेरी
मज़बूत बाहें जो लापरवाही से मेरी गर्दन पर पड़ी थी मुझे रोक रही थी, बिस्तर से उठने
का मन ही नहीं था,जब भी कोशिश करती तू नींद में ही रोक लेता , धीरे से मैं भी वापस
तुझे सीने से लगाए चुप चाप तुझे देख रही थी, तेरा हर अंग मुझे छु रहा था , मेरे
शरीर का एक एक हिस्सा मानो तुझ में समां गया हो , तेरी कमीज़ दरवाज़े पर टंगी मानो
छेड़ रही हो मुझे, मेरे कपड़े जो रात को ही कहीं लुक्का छुप्पी के खेल में छुप गए थे
, झाँक रहे थे , मैंने कहा मैं हार गयी अब नहीं ढून्दुंगी रहने दो, और मैं महसूस कर रही थी उस छूहन की गर्माहट को, काश
हर सुबह इतनी ही सुन्दर हो, यही सोच रही हूँ , तू मुझसे यूँ ही लिपटा रहे आँख खुले
तो कभी मेरा प्यार बने और कभी छोटा सा बच्चा, सुबह की चाय का इंतज़ार था मुझे ,ताकि
उठ कर कुछ पढ़ सकूँ या फिर तेरा होना किसी पन्ने पर लिख डालूं , आज कल मेरी हर अभिव्यक्ती
का किरदार तू ही है, प्यार से परिपूर्ण करने वाले मेरे इस जीवन का आधार भी तू ही
है, नहीं जानती कल का सूरज क्या लाएगा , पर तुझ से सट कर बैठे रहना तेरी बातें
सुनते रहना और तेरा चेहरा देखते रहना बस यही चाहत है अब, लोगों से बिना डरे रोज़ तू
मुझसे मिले मेरी हर परेशानी तेरी मुस्कराहट दूर करती रहे, मैं भी बस तुझे यूँ ही
सम्भाल बैठी रहूँ , तेरा हँसना तेरा रोना तेरा हर गम और ख़ुशी बस बांटती रहूँ, और
हर सुबह तू मेरे कानों में धीरे से कहे , तुम मेरी हो बस मेरी और मैं तुम्हारी हो
जाने की चाहत में फिर एक बार तुम्हारे शरीर और आत्मा से लिपट जाऊं. तेरे बालों में
हाथ डाले जब मैं तेरा माथा चूम रही थी तो लगा मानो सुबह की पहली किरण को देखा हो ,
कितना तेज है तेरे चेहरे पे, तू चमक रहा है और मुझे भी रोशनी से भर रहा है, तेरी
उंगलियाँ जो बेपरवाही से मेरे शरीर को छु रही हैं उन किरणों से कम नहीं जो रोज़
खिड़की से झाँक हमारे कमरे को उजाले से भर देती हैं , और मैं भी तेरी इन लापरवाह सी
शरारतों में उलझ जाती हूँ खुद को तेरे और करीब ले आती हूँ, तेरा स्पर्श किसी जादू
सा है , जो मुझे तुझमे खो जाने के लिए मजबूर करता है, पूरी रात तेरी साँसों ने
मेरी नींद को पूरा किया और अब तेरी ये नींद मुझे जागने ही नहीं दे रही, रात जब
तूने मुझे छूआ मुझे सीने से लगा फिर मुझे अपनी ओर खींचा और अपने होंठों से मेरे
शरीर को चूमा , धीरे धीरे मेरी आँखें बंद हुयी , तेरी हर कामना को पूरा करने की
चाहत ने मुझे तेरे हाथों को रोकने ही नहीं दिया , बत्ती बुझा जब तूने मुझे चादर ओढ़ाई
और मुझे अपने तन में भर लिया , लगा ये रात कभी ख़तम ही न हो और बस यूँ ही मैं तुझ
में समाई रहूँ और तू मुझे चूमता रहे , और आज कि सुबह को भी लगता है यहीं रोक लूँ ,
रोज़ हर रात और सुबह बस तेरे नाम कर दूँ , पता नहीं तू जानता है या नहीं , पर तेरा
शरीर जरिया बन गया है मुझे प्यार के करीब लाने को, जो एहसास कभी किसी के साथ नहीं
हुआ आज लगता है मानो समंदर में आये तूफ़ान की तरह उमड़ रहा हो. शायद कभी तू समझ सके
की इस एहसास की गहराई मुझे तेरा बनाते जा रही है , तेरी जिन्दगी के हर पल में तेरा
होने को कह रही है, तू भी करता है न मुझ से ऐसा प्यार , तुझ में भी क्या हैं यही
एहसास ? न जाने अभी भी जब तुझसे लिपटी पड़ी मैं ये सोच रही हूँ , तेरे मन में क्या
चल रहा होगा ?
एक बार तेरे मुंह से
सुनना चाहती हूँ हर रोज़ की सुनो तुम मेरी हो बस मेरी.....
अब चाय ला रही हूँ
यही सोचा था, पर तेरी बाजुओं ने फिर रोक लिया , अब तुम्हे उठाना पड़ेगा , फिर सुबह की पहली
किरण की तरह तुझे खुद में समाने के लिए... तेरे हाथों को महसूस करने के लिए, पर
नहीं तुम सोते रहो मैं तुम्हे जाने ही नहीं देना चाहती, मेरा तकिया चादर भी अब
मुझसे नाराज़ हो गए हैं , चलो नहीं करती तुम्हे तंग, जब उठोगे तब बताउंगी की तुमसे
कितना प्यार करती हूँ....................
सिर्फ तुम्हारी
Saturday 26 September 2015
याद आ गयी ..........
फिर तेरी याद आ गयी
दिल को समझाया भी
दिखाया सच का दरवाज़ा
भी
तू बस एक ख्वाब है
हसीं
ये कह कर नींद से
जगाया भी
बहस की और हारी भी
बे हिसाब ये तेरी
मोहब्बत ने
इश्क से भरी तेरी इन
आँखों ने
मेरी न मानी एक भी
फिर तेरे तन की
खुशबू ने रुलाया
तेरी साँसों का मुझसे
टकराना याद आया
तू बस गया है मुझ
में
दिल ने ये फ़रमाया
अब कहाँ से लाऊं
तुझे
ये आँखें बस ढूंढे
तुझे
दिल दिमाग हुए
दीवाने
सब जान कर भी क्यों
हो गए अनजाने
फिर तेरी याद आ गयी
पल पल की दूरी तुझसे
मार गयी
तेरी आवाज़ के मोती
गूंज रहे हैं कानों
में
चादर भी तरस गयी अब
अंगड़ाई को तेरी
कैसे न रोकूँ तुझे
कंधे पे तेरे सोने की आदत जो पड़ गयी
फिर तेरी याद आयी
!!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!
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