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Sunday 6 September 2015

दिवाली



आज दिलों में कठोरता ही दिखाई पड़ती है
प्रेम भाव का मानो अकाल पड़ा हो
दिमागी छल कपट दिलों पर हावी हो गया है
रुईं सी कोमल और हलकी भावनाओं ने मानो पत्थरों का बोझ ढो रखा हो
दिवाली पे जो चाचा ताऊ भाई बहनों से मिलने की तय्यारी होती थी
वो आज एक याद बन दिल को दर्द देती है
वो खुश रहने वाले परिवार आज एक दुसरे की जान के पीछे पडा हैं
याद है चाची का रगड़ रगड़ के नहलाना , ताई का प्यार से बैठा के खिलाना
माँ की डांट से दादी और बुआ का बचाना
चाचा के साथ खेत में जाना
और ताऊ के लाढ में अटखेलियाँ मारना
मंदिर में सब की गोद में चढ़ घंटियाँ बजाना
चुपके से जा दादा की कोठरी से गुड चुराना
याद है आज भी दिवाली की पूजा में दादी की गोद में बैठ मिठाई खाना
क्यों अब दिवाली वो दिवाली नहीं
क्यों अब अपने ही यादें बन गए
दिमाग के छल कपट ने क्या वाकई हमारे दिलों को , घमनियों से ज्यादा कठोर बना दिया है
साथ रहना ही तो ताकत थी अलग हो कर क्या पाया
साथ रह कर एक दुसरे के लिए मरना बेहतर था
आज क्यों एक दुसरे को मारना चाहते हैं
अब क्या मिलेगा , अब तो कुछ बचा ही नहीं
न दादी रही और न दादा
न वोह प्यार न विश्वास
आज तो दिलों में सिर्फ कठोरता है...!!!!!



! नीलम !

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