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Tuesday 15 September 2015

!!!!!!!!!!!! पवन भी है पुरवाई भी
मेघ भी हैं काली घटाएं भी
और साथ में तेरी रुसवाई भी
जाने क्यूँ तू रूठा है
दूर दूर क्यों बैठा है
मैं तो तुझ बिन हो गयी हूँ आधी सी
तुझको नहीं आती..... क्या मेरी  याद ज़रा सी ?
बारिश की ये बूँदें अब चुभने लगी हैं मानो  कांटे
जो कभी बना करती थी भीगी सी वो हसीं रातें !!!!!!!!!!!!!!! नीलम


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