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Tuesday 15 September 2015

सपना

एक सपना देखा उसमे कोई अपना देखा
उस सपने को अपना होते देखा
मुश्किल हुआ अब मेरा जगना
सपने में ही जीना सीखा
डरती हूँ गर नींद खुली तो
जीवन भी न जी पाउंगी
कहीं पड़े न मुझको मरना
क्यूँ ये सपना ऐसे आया
नींदों में क्यूँ मुझको जगाया
मैं तो हुयी अब ऐसी दीवानी
इस सपने को ही बस अपना पाया
सपने में जो तुझको पाया
लबों को मुस्कुराते पाया
तेरा नाम ऐसा उतरा ज़हन में
कि खुद को उसमे रमता पाया
टूटेगा ये सपना भी इक दिन
इस सच को भी अपनाया है
सच्चा या झूठा
पर अब संग तेरे ही मरना जीना
जिस दिन बिखरेगा ये ख्वाब मेरा
नहीं सिमटेगा जीवन मेरा
अब तो बस
इस
सपने को ही  चाहूँ जीना
आज फिर ये सपना देखा सपने में कोई अपना देखा !!!!!!!!!!!! नीलम


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