तुम और मैं, कितने अलग होकर भी
आज कितने समान हैं
तुम भी मेरी इच्छा से भरे हो, और, मेरी चाहत भी
तुम्हारे लिए उतनी ही मज़बूत
मेरा, तुमसे अलग होना, या, तुम्हारा, मुझ से
शायद, मायने ही नहीं रखता
बस, मेरा तुम में और तुम में मेरा हो जाना ही
हमारी पहचान है
तुम और मैं कितने अलग है
पर कुछ तो है, जो जोड़ रहा है
इस मैं और तुम को,
तभी तो, न, तुम मैं पर अटके हो और न मैं मैं करती
हूँ
अब मैं और तुम हम जो हो गए हैं
आत्मा का मिलन कहो या शरीर का
बंध तो आज गए हैं
मैं और तुम
बस ये बंधन निर्मोही न हो
और बंधे रहे मैं और तुम
जीवन भर..................नीलम
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