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Sunday 6 September 2015

वक़्त कम है



आज वक़्त कम लग रहा है और बहुत कुछ बाकी समेटने को
वक़्त के साथ साथ मैं भी सिमटती चली जा रही हूँ
डर है कंही कुछ, बहुत कुछ छूट न जाए और वक़्त ख़तम हो जाए
तुम्हारी मुस्कराहट ही अभी तक अपने में पूरी तरह बसा नहीं पाई थी
कि वक़्त भागने लगा और, और कि चाहत है कि ख़तम ही नहीं होती,
तुम्हारे कदमो की आहट भी तो रोज़ मेरे वक़्त को रोक देती है
पर सच तो यही है न कि वक़्त कम है
और बहुत कुछ बाकि समेटने को
रातें मनो हवा में उडी चली जा रही हों
और दिन है कि रुकते ही नहीं
शामें दिल में एक सुई सी चुभो गायब हो जाती है
पर नहीं समेट पाती अपनी बिखरी हुयी ज़िन्दगी को वक़त कम है
और, और बहुत कुछ है समेटने को बचपन कि यादें
, जवानी का अल्हड़पन और आज का पागलपन तीनो चेहरे कुछ सिखा गए
और अभी भी सिखा रहे है पर उस सीख को भी तो समझने और संझोने में वक़्त लगेगा
और वही आज कम लग रहा है तुमने कहा था, वक़्त सब कुछ सिखाता है,
पर ये कभी नहीं बताया कि उस सीख को सीखने का वक़त, वक़्त नहीं दे पता
आज मृत्यु शय्या पर पड़े पड़े भी मनो इस समेटने कि इच्छा से मुक्त नहीं हो पा रही
मन तो कर रहा है, छीन झपट के थोडा वक़्त और ले आऊ
और सब कुछ एक ही पल में समेट लूँ
मेरी देह को सिमटने में तो वक़्त ही नहीं लगा,
मानो कल की बात हो,जब मेरी बिखरी ज़िन्दगी ही पहचान थी
उस बिखरेपन ने ही मुझे पहचान दी,
बेपरवाही से मैं अपने आपको बांटती चली गयी
कभी सोच ही नहीं पायी की कभी मेरा बंटवारा वापस एक न हो पायेगा
न ही कभी मेरा बिखरा जीवन मैं समेट पाउंगी
आज वक़्त ख़तम सा हो गया है, पर बहुत ,
बहुत कुछ बाकी रह गया समेटने को !!!!!!!!!!!!!!!!!!!

 ! नीलम !



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