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Tuesday 8 September 2015



क्या तुमने भी देखा वो जो मैं देख रही थी ?

चाँद से उतर कर एक परी आयी थी
चमकती हुयी छड़ी हाथ में लिए 

पूछ रही थी क्या चाहिए मुझे ?

मैंने डरते डरते मांग लिया तुम्हे
हंस पड़ी वो , बोली अपने आपको ही मांग लिया मुझ से 

मांगती कुछ सोने चांदी जैसा ..........
मकान या पैसा 

शायद मैं न आ पाऊं फिर कभी दोबारा

मैंने जवाब दिया ,
यही है मेरा सोना चांदी मेरा जेवर
इसी में तो है मेरा पैसा और घर 

फिर हंसी वो, समझाने लगी
तेरा होना सच है पर जो तूने माँगा वो एक छल है 

इस मायावी से दूर  रहना
इसका प्यार तो बस एक छलावा है 

मैंने कहा , तुम तो सब जानती हो और
मुझे समझती भी हो 

दे सकती हो गर मुझको तुम सब
तो बनाओ इस छल को भी सच 

परी फिर हंसी 

कहा , मैं कर सकती हूँ ये सच
पर तुम ही पाओगी कष्ट

मैंने फिर कहा
ये छल ही तो मुझे दे रहा है आज खुशियाँ
थोडा दुःख मिलेगा तभी तो होगा ये मेरा 

परी ने छड़ी घुमाई और दे गयी मुझे तुम्हारा छल 

और आज..... बस हर मैं पल तुमसे छली ही तो जा रही हूँ
पर खुश हूँ क्यूंकि तुम ही तो हो मेरा सच !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!



नीलम

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