आज इस कमरे में बैठ
याद कर रही हूँ
वो हर पल
वो हर रंग
जो भरा था तुने मुझ में
हाथ पकड़ खींचा था जब अपनी ओर
होंठों को छुआ था
और नैनों ने मेरे किया था शोर
बिजली सी दौड़ जाती है तन मन में
जब याद करती हूँ वो पल
उस सफ़ेद चादर का रंग जाना
और मेरा कैसे सफ़ेद पड़ जाना
याद कर रही हूँ
जब बालों को सुलझाया था तूने मेरे
गालों को भी चूमा था तूने
गले लगा
कमर को भी सहलाया था तूने
याद है आज भी वो हर रंग जो भरा था तूने
इसी कमरे में कहीं तेरी उलटी पड़ी वो कमीज़
मेरी साड़ी से लिपटी
भर देती थी खुशबु तेरी
आज भी कमरे का हर कोना महकता है तेरी खुश्बू से
याद है कैसे हँसते थे तू मुझ पे
जब शर्मा जाती थी मैं तुझसे लिपट के
तेरी बाँहों में सिमटना आज भी याद है मुझे
बेमतलब बातें करना भी याद है मुझे
तेरी कमर पे उँगलियों से तेरा ही नाम लिखना भी याद है मुझे
याद है
सर्दी कि वो रात भी
जब तू आया था
ये कमरा भी शरमाया था
बटनों का खुलना और साड़ी का खिसकते जाना
देख कोहरा भी शरमाया था
अब ये कमरा बस तरसता है तेरी झलक पाने को
मैं भी खड़ी ताकती हूँ दरवाज़े को
कितने मौसम बीते सर्दी गर्मी बरसातें
कभी जली , कभी ठिठूरी, कभी बिताई भीगी रातें
अब खुद में ही खुद बन रह गयी हूँ तेरी मीठी सी वो यादें
क्या तू भी सोचता है
कैसा होगा अब ये कमरा और इसकी दीवारें
काश आ देखता इक बार
कैसे इसने समेट रखी हैं आज भी तेरी यादें !!!!!!!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!
याद कर रही हूँ
वो हर पल
वो हर रंग
जो भरा था तुने मुझ में
हाथ पकड़ खींचा था जब अपनी ओर
होंठों को छुआ था
और नैनों ने मेरे किया था शोर
बिजली सी दौड़ जाती है तन मन में
जब याद करती हूँ वो पल
उस सफ़ेद चादर का रंग जाना
और मेरा कैसे सफ़ेद पड़ जाना
याद कर रही हूँ
जब बालों को सुलझाया था तूने मेरे
गालों को भी चूमा था तूने
गले लगा
कमर को भी सहलाया था तूने
याद है आज भी वो हर रंग जो भरा था तूने
इसी कमरे में कहीं तेरी उलटी पड़ी वो कमीज़
मेरी साड़ी से लिपटी
भर देती थी खुशबु तेरी
आज भी कमरे का हर कोना महकता है तेरी खुश्बू से
याद है कैसे हँसते थे तू मुझ पे
जब शर्मा जाती थी मैं तुझसे लिपट के
तेरी बाँहों में सिमटना आज भी याद है मुझे
बेमतलब बातें करना भी याद है मुझे
तेरी कमर पे उँगलियों से तेरा ही नाम लिखना भी याद है मुझे
याद है
सर्दी कि वो रात भी
जब तू आया था
ये कमरा भी शरमाया था
बटनों का खुलना और साड़ी का खिसकते जाना
देख कोहरा भी शरमाया था
अब ये कमरा बस तरसता है तेरी झलक पाने को
मैं भी खड़ी ताकती हूँ दरवाज़े को
कितने मौसम बीते सर्दी गर्मी बरसातें
कभी जली , कभी ठिठूरी, कभी बिताई भीगी रातें
अब खुद में ही खुद बन रह गयी हूँ तेरी मीठी सी वो यादें
क्या तू भी सोचता है
कैसा होगा अब ये कमरा और इसकी दीवारें
काश आ देखता इक बार
कैसे इसने समेट रखी हैं आज भी तेरी यादें !!!!!!!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!
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