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Wednesday 16 September 2015

तेरी याद

आज इस कमरे में बैठ
याद कर रही हूँ
वो हर पल
वो हर रंग
जो भरा था तुने मुझ में
हाथ पकड़ खींचा था जब अपनी ओर
होंठों को छुआ था
और नैनों ने मेरे किया था शोर

बिजली सी दौड़ जाती है तन मन में
जब याद करती हूँ वो पल
उस सफ़ेद चादर का रंग जाना
और मेरा कैसे सफ़ेद पड़ जाना

याद कर रही हूँ
जब बालों को सुलझाया था तूने मेरे
गालों को भी चूमा  था तूने
गले लगा
कमर को भी सहलाया था तूने

याद है आज भी वो हर रंग जो भरा था तूने

इसी कमरे में कहीं तेरी उलटी पड़ी वो कमीज़
मेरी साड़ी से लिपटी
भर देती थी खुशबु तेरी

आज भी कमरे का हर कोना महकता है तेरी खुश्बू से

याद है कैसे हँसते थे तू मुझ पे
जब शर्मा जाती थी  मैं तुझसे लिपट के

तेरी बाँहों में सिमटना आज भी याद है मुझे
बेमतलब बातें करना भी याद है मुझे
तेरी कमर पे उँगलियों से तेरा ही नाम लिखना भी याद है मुझे

याद है
सर्दी कि वो रात भी
जब तू आया था
ये कमरा भी शरमाया था
बटनों का खुलना और साड़ी का खिसकते जाना
देख कोहरा भी शरमाया था

अब ये कमरा बस तरसता है तेरी झलक पाने को
मैं भी खड़ी ताकती हूँ दरवाज़े को
कितने मौसम बीते सर्दी गर्मी बरसातें
कभी जली , कभी ठिठूरी, कभी बिताई भीगी रातें
अब खुद में ही खुद बन रह गयी हूँ तेरी मीठी सी वो यादें

क्या तू भी सोचता है
कैसा होगा अब ये कमरा और इसकी दीवारें
काश आ देखता इक बार
कैसे इसने समेट रखी हैं आज भी तेरी यादें !!!!!!!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!



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