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Sunday 6 September 2015

परछाईयाँ










आज आसमान धुन्दला है , कहीं काली और कहीं लाल परछाइयाँ दिखाई पड़ती है
जैसे सब की सब आज धरती पर उतर जाना चाहती हों
उनके आने की बेताबी कुछ बूंदो ने दिखाई
और फिर जब वही बूंदे शोर मचाने लगीं
मानो लगा सारी परछाईया लड़ रही हों
पहले मैं पहले मैं , यही शोर सुनायी दिया
ज़मीन ने अपनी विशाल बाहें खोल दी,
और उनके लिए आसरा बना दिया
पेड़ पौधों का इंतज़ार भी लगा जैसे आज कुछ पुराने मित्र फिर मिलने जा रहे हों
उसी खुले आसमान के नीचे
फिर धीरे धीरे वो शोर ख़तम होने लगा
चारों और अँधेरा और सन्नाटा
मानो कुछ पलों की मुलाकात सब की प्यास बुझा
लौट गयी है
सब को वापस जीवित कर
इंतज़ार का वही तोहफा लौटा कर
अपने उसी काले आसमान में !
अब परछाईया नहीं सिर्फ उनकी परछाईं नज़र आ रही है
और फिर धीरे धीरे आसमान साफ़ हो गया
वो लौट गए और छोड़ गए वो उम्मीद जीवित होने कि फिर से !!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!

! नीलम !

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