मेरे शब्द सुन्दर और सजे हुए नहीं
पर कोशिश की है की साफ़ और सरल हों
बनावटी लोगों और शब्दों से मन घबराता है
इस दो मुखी चेहरे वाली दुनिया कि चाहतें
मानो आत्मा के पवित्र रूप को पहचानने से इनकार कर
रहे हों
वो शब्द जो अन्दर ही अन्दर एक ताना बना बुनते हैं
उनकी सफाई जुबां तक आते आते क्यों गन्दगी से भर
जाती है
और वही सरल और सुन्दर शब्द कठिन और अभद्र हो जाते
है
क्या मन की भाषा दिमाग को समझने में कठिन लगती है
या मन के शब्द सरलता से पहुँच ही नहीं पाते मुख्य
तक
क्यों दिल की जुबां बेजुबान है
और जिव्य्हा उस से रुष्ट
क्या मेरा साफ़ और सरलता से बोलना इतना भयावह है
की लोग समझना ही नहीं चाहते या समझ कर दूर भागते
हैं
क्या मेरी आत्मा की सरलता किस के प्रेम के योग्य
नहीं
या मेरा कुछ कहना व्यर्थ ही है
सुन कर भी अनसुना कर देने वाले ये दो मुखी चेहरे
क्या कभी समझ पायेंगे अपनी और मेरी आत्मा की इस
पवित्रता को
...... नीलम
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