कहा था तुम्हे मेरी
हर अभिव्यक्ती और विचार में तुम आ गए हो , अपने तन के साथ साथ जब अपना मन भी
तुम्हे सौंप दिया था , यही सोचा था की शायद तुम शिला बन जाओगे मेरे हर विचार और
सोच को संभाल लोगे, पर तुम तो खुद ही डर गए, मैं बनना चाहती हूँ तुम्हारे लिए वो
स्तम्भ जिस से तुम्हारी ओर आती हुयी हर मुश्किल टकरा वापस चली जाए, मुझे ताकत बनाओ
अपनी कमजोरी नहीं, न मैं खुद कमज़ोर हूँ और न तुम्हे कभी होने दूंगी, शायद हम साथ
मिलकर एक मज़बूत इमारत को खड़ा कर सकें न की यादों का खंडर बन बिखर जाएँ.... इंसान
तुम भी हो और मैं भी गलती तुम भी करोगे और मैं भी, यही तो होंगे वो पल जब तुम मुझे
संभाल लोगे और मैं तुम्हारा हाथ और कस के थाम लुंगी, तुमने कहा तुम मेरे प्रेम के
काबिल नहीं, और मैं सोचती रह गयी कि प्रेम भी क्या काबिलियत या किसी प्रवेश
परीक्षा पर निर्भर करता है , क्या पहले परीक्षा लेनी पड़ेगी किसी को दिल में बसाने
के लिए, ये तो बस एक अभिव्यक्ती है इस चंचल मन की जो बिना कुछ सोचे समझे किसी के
लिए भी किसी भी वक़्त सामने आ सकती है, तुम काबिलियत को मत तोलो, बस इस प्रेम कि
शक्ति को अपनाओ और देखो कैसे हम दोनों उन परिंदों की तरह उड़ रहे होंगे दूर आकाश
में जहाँ कोई छु भी न सके...... नीचे से देख सब हमारी उंचाईयों तक आने कि कोशिश
करें , और हम बिना रुके अपनी उड़ानें भरते रहें...... !!!! नीलम !!!!!!!
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