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Sunday 6 September 2015

इंतज़ार



रेशम की चादर में लिपटी
अपने आप से शर्माती मैं
तुम्हारे अधरों के पास आने का एहसास
तुम्हारी नज़रों से अपनी नज़रों को मिलाने का संकोच
और हर पल तुम्हे छूने की वो लालसा
मेरी देह को भाव समाधी तक पहुंचा रही है
सिलवटों को ज्यो का त्यों रखने की बेतोड कोशिश और
रतिनाथ (कामदेव) की कल्पना में रात का इंतज़ार
फिर तुम्हे पाने की वो आतुरता
और फिर तुम्हारी साँसों का वो शोर सुनने की चेष्टा
रेशम कि चादर में लिपटी मैं
आज फिर अपने आप से शर्मा रही हूँ
रात के अँधेरे में शशि (चाँद) की तरह दमकती तुम्हारी काया से लिपट जाना चाहती हूँ
क्षीर (दूध) जैसा तुम्हारा सुन्दर रंग
मुझे तुम्हारी ओर बढ़ाता चला जाता है
मानो आकर्षण के माया जाल में मैं धंसती जा रही हूँ
इस रेशमी चादर में तुम्हे अपने आप से बाँध लेना
वैसा ही है जैसे कृष्ण की बासुरी के मोहजाल में राधा का खो जाना...!!!!!!!!!!!!

! नीलम !


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