शाम हो चली रात के
अन्धकार की धुंद समेटे हुए
अमावस कि ओर बढ़ते
चाँद की रोशनी कम हो गयी !!
और उसी के साथ मेरे
मन का अन्धकार भी बढ़ गया
काला गहरा रंग फिर
कुछ रंगों के इंतज़ार में !!
अन्धकार को रोशनी से
फिर जुड़ने के लिए
मन को अन्धकार में
प्रवेश करवाता है !!
फिर रोशनी के इंतज़ार
में , जीता है उस रात में
काजल जैसा काला रंग
और रात जैसा सुन्दर पहर !!
मानो मन को उस हिरण
कि याद दिलाता है
जो रोशनी के साथ
दौड़ा चला आएगा !!
मेरे इस अँधेरे खाली
मन को उजाले से भरने
और फिर मैं अमावस से
निकल......... खिल उठूंगी पूनम के चाँद सी.....!!!!!!! नीलम !!!!!!!!
No comments:
Post a Comment