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Sunday 6 September 2015

विचार



क्या सोच विचारो पर इतनी हावी हो जाती है कि सब विचारहीन ही हो जाते है
आज हमारे विचार हमारी सोच को प्रभावित ही नहीं कर पा रहे
क्यों हमारी सोच हमारे जिस्मो को मारे चली जा रही है
इस सोच के पीछे के कारणों पर हम विचार ही नहीं कर पा रहे
उस मासूम चेहरे उस छोटी सी देह को देख कर मानो प्यार और लाड का सागर उमड़ पड़ता है
फिर क्यों एक सोच उसे मार देती है
उस मासूमियत को नष्ट कर देती है
और सब विचारहीन हो जाते है

शरीर को कंकाल बना देने वाली येह सोच आज भीड़ में हर जगह मिल जायेगी
हमारे आस पास शायद कभी हमारे अन्दर ही
शरीर की कामना क्या इस सोच को इतना परिपक्व और कट्टर बना रही है
कि हाड मांस के आलावा हम आत्मा तक पहुँच ही नहीं पा रहे
क्यों हम विचारहीन बनते चले जा रहे है
विचारों को शब्दों के जाल में हमने पिरो तो लिया और खूब सजा के पेश भी कर दिया
पर क्या सोच को बदल पाए
क्यों ये सोच हमारे विचारो पर हावी हो गयी है, कि समझ ही नहीं आ रहा
कि शरीर सच है या आत्मा !!!!!!!!!!!!!!

! नीलम !

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