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Sunday 6 September 2015

सागर



मैं शांत और अकेले अपने आप में
चुप थी
न कोई पास में न किसी के पास आने की आहट
बस अकेले ही मीलों तय कर रही थी
खुश थी, हँसना और रोना दोनों ही मेरे अपने थे
खुदी से लडती और खुदी को मना लेती थी
अपने दर्द भी अपने ही थे
रात का अँधेरा भी और दिन का उजाला भी
मानो सिर्फ मेरे लिए हों ,
बस इतनी ही तो थी मैं
शांत और अकेले अपने आप में
न किसी के पास न किसी के पास आने की आहट
फिर एक दिन सागर में मोती की तरह कुछ चमका
और मुझे मिला ,
अनमोल पवित्र सफ़ेद चमकता मोती
मेरा हो गया
ढूंडा नहीं था मैंने,
न ही उसके आने कि आहट महसूस की थी
पर सागर कि कोई चाल थी ये
शायद सागर ही कोई बहाने ढूँढ रहा था मुझसे और मेरे अकेलेपन से जुड़ने का
बस मैं भी अनजानी सी जुड़ती चली गयी
मेरे अकेलेपन का एक और साथी मिल गया था मुझे
गहरे राजों से भरा अनन्त
और मचलता हुआ ,
अपने भीतर न जाने क्या क्या समेटे मेरे करीब आता चला गया
शायद मेरी तरह वो भी जी रहा है शांत और अकेले अपने आप में
मोती और सागर अब दोनों मेरे हो गए,
किनारे खडी मैं, अपनी बाहें फैला समेटना चाहती थी सागर को
पर शायद मेरी बाहें छोटी पड़ जाएँ और मैं किनारे कड़ी सागर को बस निहारती रह जाऊं
और वो मुझे भी अपने अन्दर समां के फिर शांत और अकेला हो जाए
और फिर एक दिन उसके तुफानो से लडती हुयी मैं
किसी किनारे मिलूं शांत और अकेले अपने आप में .................!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!!
! नीलम !


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