बीमार
ये कौन सी नयी बीमारी है , समाज में कहाँ से आयी
ये महामारी है ? चारों ओर फ़ैल गया अब ये रोग, उसकी गर्दन मेरे नीचे , मेरी गर्दन
उसके नीचे, क्यूँ नाच रहा इंसान.......हवस, लालसा के बढ़ते मरीज़ पार कर रहे अब हर
देहलीज़, जहाँ जाऊं वहीँ मिल जाते ये लोग अगर न रुक पाया ये रोग , जिंदा लाशें मिलेंगी
चारों ओर....., प्यार भरोसे की दवाई हो गयी अब बेअसर , चारों ओर फैल गया ये रोग. ऐसा
असर पड़ा है इसका , रिश्ते भी मुंह चले अब मोड़, न बाप भला न भैया सबसे बड़ा रुपैया,
यही शोर है चारों ओर, न बहन दिखे न माँ , न बच्चे बचे न कोई बूढ़ा कोई बना है रोगी
इसका कोई बना है रोग ...... ये कौन सी नयी बिमारी है, समाज में कहाँ से आयी ये
महामारी है, कोढ़ की तरह फ़ैल रही है, सब को खा जाने के लिए.....न दुआ न दवा बनी है
इसे मिटाने के लिए... अन्दर ही अन्दर कर रही हम को कंकाल ..... सेक रहे हैं अपनों
की लाशों पर ही हाथ , सही कहा है फिर से किसी ने “ऐसा कलयुग आया है , हंस चुने है कंकड़
पत्थर कौया मोती खाए है” बीमारों की जनसँख्या बढ़ती ही जा रही है जख्म भी गहरे होते
चले जा रहे हैं और एक अकाल सा पड़ गया है खुशियों और मोहब्बतों का ......गलियाँ शाम होते
ही सूनी होने लगी हैं...न खेलते हैं अब बच्चे..... न पीपल के नीचे जमती अब महफ़िलें...
उन पर तो अब लटकते हैं अब किसान . चाकू
छुर्रियाँ गोली और बारूद, नए खिलोने बन गए
हैं आज......नहीं घबराता इनसे अब इंसान.... परिंदों को भी आदत हो गयी अब.... गोली
की आवाज़ से न डरते वो भी अब ..... चीख
पुकार से भरे हैं अब बाज़ार खून से लथपथ अब आते हैं अखबार......ये कौन सी नयी बिमारी
है, समाज में कहाँ से आयी ये महामारी है??????????????? नीलम
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