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Sunday 6 September 2015

मेरी कल्पना



काल्पनिक शक्ति तो देखिये
न जाने, किन किन कल्पनाओं को जन्म देती है
जब इनसे बहार निकलो तो
जग काटने को दौड़ता है
क्यूंकि काल्पनिक संसार ऐसा नहीं !
तुम्हे पता है कि मेरा एक घर है
घने जंगलों में पहाड़ों के ऊपर किसी नदी के किनारे
वो छोटा सा घर जहाँ मेरी कल्पनाएँ सांस लेती हैं
मुझे जीवित रखती हैं
ये शहर कि सड़कें , गलियाँ और चौबारे सब अपने ही हैं
पर फिर भी यहाँ आवाजें ही नहीं बल्कि शोर भी सुनायी देता है
और मेरे घर में सिर्फ ध्वनी
जहाँ चिड़िया गाती है नदियाँ पुकारती हैं
पेड़ों से पत्ते आवाज़ से देते हैं
सुबह और शामें एक संगीत को जन्म देती हैं
रातों में झींगुर लोरी सुनाते हैं
और मैं बस उन्ही कल्पनाओं में जीवित रहती हूँ
नहीं समझ पायी मैं इन शहरों की भाग दौड़
वो रोज़ की रोटी कि चिंता
पर सच तो यही है
मेरी कल्पनाएँ जितनी सुन्दर हैं उतनी ही कल्पित
जीवन है, तो कर्म ही जीवित रखेंगे
फिर भी एक घर है मेरा
मेरी कल्पनाओं में
कहीं  परे इन शहरों से.........!!!!!!!!!!!! नीलम


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