लोग थकते नहीं सलाह देते, झूठे दिलासे भी देते
रहते .....ऐसा कर लो , वैसे कर लो, सिखाते
ही रहते ...कभी कभी सोचने पर मजबूर करते, मुझको सबसे बद्तर कर देते ....... ‘ओ’
सलाह देने वालों , सुना तो होगा “जिसके खुद के घर हो कांच के ,वो औरों के घर पत्थर
नहीं मारा करते”.....तुम हो अगर इतने ही ज्ञानी तो थोड़ा खुद से ही क्यों नहीं बाँट
लेते , हंसती हूँ मन ही मन तुम पर ये नहीं जानते, सोचती हूँ.. तुम कभी खुद में ही
क्यूँ नहीं झांक लेते ....सुनो, ऐसा है
मैं तो हो गयी हूँ ढींठ....अब तू भी खुद से कुछ तो ले सीख!!!! दे अपने को सलाह
दिलासे, सिखा खुद को कैसे हैं जीते .... मेरे घर में न तू कर तांका झांकी मेरी तो
कट जायेगी, तेरी भी तो बची है बाकी !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!
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