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Friday 25 September 2015

मुट्ठी का रेत






मुट्ठी से रेत को निकलते देखा है
आज फिर मैंने खुद को तनहा देखा है
की थी एक कोशिश मैंने भी
उन जलपरियों जैसे प्यार के सुन्दर सम्मोहन को रचने की
और तुझे बाँधने की अपने प्रेम पाश में
पर आज फिर प्रेम रहित हो गयी
न तू समझा न मैं समझी
समय के साथ साथ तू भी निकल गया
मेरे दिल से जीवन से आत्मा को कचोटता हुआ
आ जाए गर वो वक़्त वापस
पा लूँ इक बार फिर तुझे
और बाँध लू खुद से फिर एक बार
लिपट जाऊं तुझसे और
फिर से भींच लूँ समय के रेत से भरी मुट्ठी को !!!!!! नीलम !!!!!!!

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