मुट्ठी से रेत को
निकलते देखा है
आज फिर मैंने खुद को
तनहा देखा है
की थी एक कोशिश
मैंने भी
उन जलपरियों जैसे
प्यार के सुन्दर सम्मोहन को रचने की
और तुझे बाँधने की
अपने प्रेम पाश में
पर आज फिर प्रेम
रहित हो गयी
न तू समझा न मैं
समझी
समय के साथ साथ तू
भी निकल गया
मेरे दिल से जीवन से
आत्मा को कचोटता हुआ
आ जाए गर वो वक़्त
वापस
पा लूँ इक बार फिर
तुझे
और बाँध लू खुद से
फिर एक बार
लिपट जाऊं तुझसे और
फिर से भींच लूँ समय
के रेत से भरी मुट्ठी को !!!!!! नीलम !!!!!!!
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