कभी कभी लगता है
मानो जीत लिया मैंने सब कुछ
कभी कभी ये भी लगता
है कि खुश तो हूँ हर वक़्त
फिर एक दिन न जाने
कहाँ से उठता है एक दर्द
कहीं सीने में तीर
सा चुभ जाता है
मेरे कभी कभी जीतने
और खुश होने के स्वप्न से विचार को ख़त्म कर देता है
न जाने कब आ जाये ये
दर्द और मेरे सपने को तोड़ मुझे नींद से जगा दे
पर फिर सोचती हूँ
क्या वाकई नहीं जीत पायी कुछ और न रह सकी खुश
क्या है जो अधूरा है
क्या है जो पूरा नहीं है ?
सब तो है तू है तेरा
साथ भी है घर है और प्यार भी है
फिर मैं क्यों अधूरी
सी खडी हूँ ?
और इस झूठ को सच समझ
कभी कभी सोचती हूँ
मानो जीत लिया मैंने
सब कुछ और खुश तो हूँ हर वक़्त
फिर कभी कभी क्यूँ
ये अनजानी सी अधूरी कहानी खुद को ही चुभती है ?????!!!!!!! नीलम !!!!!!!!
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