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Tuesday 8 September 2015

शिकायत




आज चाँद से भी शिकायत की
इन बारिश की बूंदों से भी
तुमने फिर जो देर कर दी आने में 
देखो चाँद भी अब हमारी खिड़की से दूर चला गया .....
और काले बादल भी छंट गए 
तुम्हारे इंतज़ार में अब आँखें लाल पड गयीं 
पर..... तुम न आये
अब आदत भी हो गयी है,
नींद में जाग कर तुम्हे ढूँढने की
जाने कितनी रातें ....
मैनें शिकायत कि है चाँद से
चाँद भी..... शायद थक गया और खिड़की से ही.... दूर हो गया
अब किस से करूँ तुम्हारी शिकायत ?
तुमने फिर जो देर कर दी आने में 
रोटियाँ भी अब तो सूखी पड गयीं
चावल के दानों की खुश्बू भी मानो ढके ढके
कहीं खो गयीं
तुमने फिर जो देर कर दी आने में 
मेरी काया भी अब तो हार गयी ....
चाँद से शिकायत कर आज मैं भी थक गयी...
क्या सोचते नहीं तुम भी
फरमाईश करो कभी चाँद से मेरी ?
देर से आना और जल्दी चले जाना
अब ऐसा लगता है मानो कोई बहाना
क्यूँ मेरा चाँद आज रूठ गया?
या तुम्हे कोई नया चाँद मिल गया ?
बारिश जो बंद हुयी
लगा मानो मुझसे मेरा आसमाँ रूठ गया .......
तुमने फिर जो देर कर दी आने में !!!!!!!!!!!!
नीलम  

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