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Wednesday 30 December 2015

दुनिया चलाने वाले

कोयले की खान में दबे हज़ारों हाथ
जो हीरा खोज दे गए
न नसीब जिन्हें कफ़न कभी हुआ
जो जल के ख़ाक हुए
किसी पटाखे के कारखाने में
दीवाली में हमें रोशनी दे गए
सुबह के सूरज की रोशनी के इंतज़ार में
कितने ही मज़बूत कंधे
जो दफ़न हुए बर्फीली पहाड़ियों में
हमें प्यार की गर्माहट में महफूज़ छोड़ गए
वो जो सड़क पर सर्द रातों में खड़े
हमारी सलामती के लिए शहादत पा गए
नक्सलियों से कटे कभी
कभी आतंकी हमलों में टुकड़े हुए
कारखानों में कितनों ने अंग कटवाए
जो हमारी ज़रूरतों को हाथ दे गए
जाने कितनों ने ज़हर पिया
और हमें थैलियां सब्ज़ी लाने को पकड़ा गए
चूड़ियों से हाथ सजाये
न जाने बैठे हैं कितने अपनी आँख गवाए
मंदिरों में बैठे भगवान को महकाते
धुप अगरबत्ती बनाते
जाने कितने ही भगवान् के प्रिय हो जाते
पेट की भूख कहो या कहो मजबूरीयां
ये सब हैं जो दुनिया चलाते....!!!! नीलम !!!!

Tuesday 29 December 2015

बदलता इंसान

न दिल को इतना पत्थर बना
की भावनाएं दब के मर जाएँ
न ज़िन्दगी इतनी मुश्किल बना
की तू जीना ही भूल जाए
ईश्वर के सामने न इतना गिर
की वो तेरा हाथ थामना भूल जाए
न इंसानियत को मार तू इतना
कि इंसान होते हुए भी तू शैतान कहलाये
बदला है युग बदला है तू भी
पर इतना न बदल
कि जानवर भी तुझसे बेहतर कहलाये
हुनर तुझ में है सारा
उस हुनर को न ऐसे दिखा
कि देखने वाला डर जाए
मौत की सच्चाई से भी वाकिफ तू
पर उसे खेल समझ दूसरों से ऐसे मत खेल
कि मौत भी घबरा जाए
इंसान के नाम पर ऐसे न ग़ुरूर कर
कि कायनात ही खत्म हो जाए
कुदरत को न ऐसे ललकार
कहीं उसके कहर से तेरा घर ही लूट जाए!!!!!! नीलम !!!!!

Monday 28 December 2015

रहमत तेरी

खफा क्यों मुझसे तू मेरे मौला
क्यों ज़िन्दगी भी कर रही शिकवे
नादान मैं कब से भटक रही
क्यों मेरी झोली में तेरी तस्वीर नहीं
कहाँ खोजूं तुझे
किस गली मैं जाऊं
फकीर बनी अब फिर लौटी हूँ तेरे दर पर
ख़्वाज़ा गरीब नवाज़
देख आज मेरे अश्कों ने ही मेरे चराग की
चाँद रात में लौ बुझा डाली
ऐ खुदा कर रही हूँ इकरार गुनाहों का
इस कदर सज़ा न दे की बिखर जाऊं
ज़ख्म छूपाते हर महफ़िल में मुस्कायी हूँ
ऐ खुदा तू ही बता अब क्या करूँ
अब तो हर गज़ल हर नज़्म भी उदास है
कहाँ खोजूं तुझे
कभी इस भरी महफ़िल में
तू मुझ पर भी नज़र डाल
क्यों मैं ही तन्हा रह गयी
तेरे रेहमों करम से
कभी इस बाशिंदे पर भी ऐतबार तो कर
एक परिंदा हूँ जो आसमां न छु पायी
कभी तो मेरे परों को भी तू आसमाँ नसीब कर
सरकार तू मेरा साहिल तू
रहमत रहे तेरी मैं कभी तो आबाद रहूँ
न बुझे चराग़ मेरे घर का मेरे मौला
मैं नाम ऐ मुहम्मद लिखूँ
मेरी कलम को ये रोशनाई तू दे !!!! नीलम !!!!

कर्ज़दार

कर्ज़दार मैं
कभी तेरी प्रभु
तो कभी तेरी दुनिया की
सांस तेरी है
पर चलती इस दुनिया में है
दिल तूने दिया
धड़कन भी
पर फिर भी धड़कता
किसी के दीदार से है
जीवन तेरा दिया है
पर जीना सिखाया
इस दुनिया ने
गलत सही तूने बनाया
पर समझाया यहाँ रहने वालों ने
मेरी हर चीज़ तेरी दी हुयी
पर खरीदार भी बनाये इस दुनिया ने
हर मोड़ पे तू है
पर रस्ता दिखाया 
किसी इंसान ने
तू मुझ में है
फिर बस्ता कोई और क्यों मन में
क़र्ज़ तेरा भी मुझ पर
क़र्ज़ आज तेरी दुनिया का भी है
कर्ज़दार भी तो बनाया तूने है !!!! नीलम !!!!

Saturday 26 December 2015

छलनी जीवन की



छलनी ने फिर छाना जीवन को
न जाने कितने पत्थर पाए
न जाने कितनी ही माटी
कही बड़ा सा रोड़ा निकला
कहीं निकली सुईं
कहीं पाया खुशियों को छनते
कही ग़मों से बढ़ते पाया
छनते छनते ज़िंदगी ने पूछा
क्या निकाल रहा मुझ से
गम न हो तो ख़ुशी न दूंगी
पत्थर देती तो रस्ता साफ़ कहीं  
मंजिल की पगडण्डी संकरी
पर यही हूँ मैं
न छान मुझे इतना
कि
चलना तू भूल जाए
रस मेरा तू ले न पाए
मुश्किल हूँ बड़ी
तो आसान भी उतनी
समझ सके तो तू समझ
न छान मुझे की रहे न जीवन में कुछ.....

  !!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!

Friday 25 December 2015

पीड़ा

पीड़ा मन की बड़ी विचित्र
न जुबां पर आये
बस नीर बन अखियन से बरसे
मन को लाचार बनाए
अत्यन्ताभाव के बोध से
हर पल मन को क्यूँ रुलाये
न ये जग जाहिर हो पाए
छलके क्यों अंधियारे में
अधरों पर अजानी सी मुस्काये
न कोई जान इसे कभी पाए
मन तड़पे ऐसे मानो
अंग अग्नि में भभके
न कर पाए बयां किसी को
कैसे ह्र्दव्य्था बतलाये !!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!

Tuesday 22 December 2015

रोगी हवा

रोगी हवा
आज हवा ही शायद रोगी हो गयी
इसके झोंकों से पीड़ित दुनिया सारी हो गयी
कहीं हवा है बारूद भरी
कहीं खून से कतरे उडाती
आज हवा ही शायद रोगी हो गयी
न समझ आता ये रोग
दुनिया भी सारी रोगी हो गयी
कहीं रोग मतलब का
कहीं फैल रहा कटुता का
कैसे सारी इंसानियत कोमा में चली गयी
बाज़ार में न मीठी प्यार की दवाई ही बची
जाने कैसे दुनिया सारी रोगी हो गयी
कहीं फैलता रोग लोभ का
कहीं फैलती हैवानीयत
कहीं उड़ रही इज्ज़त बवंडर में
कहीं धरती के नीच फैल रहा कोढ़
पैर की बिवाई सी फट गयी
समंदर भी दर्द से कर रहा शोर
पड़ा हो जैसे दिल का दौरा
अंत आ गया मानो उसकी ओर
लाखों की आबादी मिट रही
हर एक यहाँ हो गया रोगी
किसी को हवस तो
किसी को खून की लत पड गयी
ये बीमारी लाइलाज जो हो गयी
न भय मौत का न भय मारने का
नदियाँ भी बंटवारे का हिस्सा हो गयीं
पीड़ित ये पीढ़ी हो गयी
पुरखों कि दवाई सीख की
देखो कैसे बेअसर हो गयी
आज तो हवा भी रोगी हो गयी............ !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!

Saturday 19 December 2015

सुप्रभात



जब वो गुलाब खिलता
सुबह महकती मेरे आँगन में
मोगरे की खुशबु लिए
तोते गाते हर कोने में
गेंदा भी खिलता रोज़
पंख फैलाए नाचते मोर
किरणों के झिलमिल प्रकाश में
नहाती हरी हरी वो दूब
परिंदे भी देते आवाज़
करने को इक नया आगाज़
कहीं नाज़ुक सी छुईमुई खिलती
कहीं खिलता सूरजमुखी
दूर रेल की पहली सीटी सुनती
और सुनता बढता शोर
घड़ी जाने कब चलते चलते दौड़ने लगती
नल का पानी भी चलता ऐसे
मानो कतार में हो १०० लोग
बच्चों के बसते सजते
कहीं सजता दफ्तर का डिब्बा
सुबह का मुर्गा ऐसे बोला
जैसे कल न होगा फिर
ज़िन्दगी की दौड़ का चक्र
शुरू होता ऐसा हर रोज़ ...... !!!!!!!! नीलम !!!!!!!

Friday 18 December 2015

सुप्रभात



सुप्रभात

किरणमाली कि सुनहरी प्रकाश रेखाएं
धरा पर बिखरी हुयी
सातों सुनहरी अश्वों पर सवार
छिटकाते अपने प्रकाश को
चले सूर्य भगवान्
उषाकाल का उनका भ्रमण
पर्वत पर पड़ते कदम
सोने के रथ से उतरते दिपक चिराग
पूरब से निकलता ज्योति प्रकाश
वनपक्षी और जलपक्षी
चहक रहे हर ओर
कल्पवृक्ष की भाँती
लहराते दरख्त
बन रहे जीवनधर
बालसुर्य की लाली देख
मुस्काते बनफूल
सुनहरी अश्वों की टाप से
जागे देखो पशूनाथ
किरणों के प्रकाश से उठा सारा भूलोक
रात्रि के तिमिर को फिर भूल.......!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!