काला घना अँधेरा
सफ़ेद धुआं
लम्बा सा रास्ता
ठिठूरती सी रात
वहीँ कहीं किनारे जलती
वो आग
कांपते हाथ सिकते
साथ
न होंठ कुछ कहते
न कहती कुछ वो रात
न आँखें कुछ देख
पाती
न रास्ता आगे बढ़
पाता
न बढ़ती वो रात
धुंधला सा सब चारों
ओर
सर्द हवा का शांत सा
शोर
हड्डियों की खनखनाहट
कहीं दांत किटकिटाते
और वहीँ कहीं दूर न
जाने कितने बेघर
सड़कों पर रात
गुज़ारते
सर्द रातों की भूख
मिटाते
थाम ले ये ठिठुरते
बदन
ओढा दे गर्माहट का
कम्बल
जाड़े की काली रात में
दे दे थोडा साथ....!!!!!! नीलम !!!!!!!!
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