Followers

Thursday 17 December 2015

सर्द रात



काला घना अँधेरा
सफ़ेद धुआं
लम्बा सा रास्ता
ठिठूरती सी रात
वहीँ कहीं किनारे जलती वो आग
कांपते हाथ सिकते साथ
न होंठ कुछ कहते
न कहती कुछ वो रात
न आँखें कुछ देख पाती
न रास्ता आगे बढ़ पाता  
न बढ़ती वो रात
धुंधला सा सब चारों ओर
सर्द हवा का शांत सा शोर
हड्डियों की खनखनाहट
कहीं दांत किटकिटाते
और वहीँ कहीं दूर न जाने कितने बेघर
सड़कों पर रात गुज़ारते
सर्द रातों की भूख मिटाते
थाम ले ये ठिठुरते बदन
ओढा दे गर्माहट का कम्बल
जाड़े की काली रात में दे दे थोडा साथ....!!!!!! नीलम !!!!!!!!

No comments:

Post a Comment