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Friday 25 December 2015

पीड़ा

पीड़ा मन की बड़ी विचित्र
न जुबां पर आये
बस नीर बन अखियन से बरसे
मन को लाचार बनाए
अत्यन्ताभाव के बोध से
हर पल मन को क्यूँ रुलाये
न ये जग जाहिर हो पाए
छलके क्यों अंधियारे में
अधरों पर अजानी सी मुस्काये
न कोई जान इसे कभी पाए
मन तड़पे ऐसे मानो
अंग अग्नि में भभके
न कर पाए बयां किसी को
कैसे ह्र्दव्य्था बतलाये !!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!

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