न दिल को इतना पत्थर बना
की भावनाएं दब के मर जाएँ
न ज़िन्दगी इतनी मुश्किल बना
की तू जीना ही भूल जाए
ईश्वर के सामने न इतना गिर
की वो तेरा हाथ थामना भूल जाए
न इंसानियत को मार तू इतना
कि इंसान होते हुए भी तू शैतान कहलाये
बदला है युग बदला है तू भी
पर इतना न बदल
कि जानवर भी तुझसे बेहतर कहलाये
हुनर तुझ में है सारा
उस हुनर को न ऐसे दिखा
कि देखने वाला डर जाए
मौत की सच्चाई से भी वाकिफ तू
पर उसे खेल समझ दूसरों से ऐसे मत खेल
कि मौत भी घबरा जाए
इंसान के नाम पर ऐसे न ग़ुरूर कर
कि कायनात ही खत्म हो जाए
कुदरत को न ऐसे ललकार
कहीं उसके कहर से तेरा घर ही लूट जाए!!!!!! नीलम !!!!!
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Tuesday 29 December 2015
बदलता इंसान
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