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Saturday 19 December 2015

सुप्रभात



जब वो गुलाब खिलता
सुबह महकती मेरे आँगन में
मोगरे की खुशबु लिए
तोते गाते हर कोने में
गेंदा भी खिलता रोज़
पंख फैलाए नाचते मोर
किरणों के झिलमिल प्रकाश में
नहाती हरी हरी वो दूब
परिंदे भी देते आवाज़
करने को इक नया आगाज़
कहीं नाज़ुक सी छुईमुई खिलती
कहीं खिलता सूरजमुखी
दूर रेल की पहली सीटी सुनती
और सुनता बढता शोर
घड़ी जाने कब चलते चलते दौड़ने लगती
नल का पानी भी चलता ऐसे
मानो कतार में हो १०० लोग
बच्चों के बसते सजते
कहीं सजता दफ्तर का डिब्बा
सुबह का मुर्गा ऐसे बोला
जैसे कल न होगा फिर
ज़िन्दगी की दौड़ का चक्र
शुरू होता ऐसा हर रोज़ ...... !!!!!!!! नीलम !!!!!!!

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