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Friday 23 October 2015

जीवन पथ




पैरों में पड़े छाले बता रहे हैं
पथ में कितने कांटे रहे होंगे
रस्ते कितने पथरीले होंगे
नहीं भरे घाव अभी तक
न जाने कब तक चले होंगे
और न जाने आगे कितने चलेंगे
पथ में थक कर जब जब बैठे होंगे
आह निकली होगी दर्द भी सहे होंगे
कहीं उस पथ में खोया भी होगा
और कहीं पाया भी होगा
कहीं मुस्कुराए तो कहीं रोये भी होंगे
छालों और घावों कि उपेक्षा भी की होगी
किसी का सहारा भी लिया होगा
और किसी को दिया भी होगा
आगे न जाने कौन सा अब आएगा मोड़
निकलेंगी आहें जाने अब कौन जाएगा छोड़
पैरों के छाले बढ़ते जायेंगे
घाव भी गहराते जायेंगे
पर नहीं थमेंगे ये कदम
गिरेंगे भी संभलेंगे भी
उठेंगे फिर चलेंगे भी
पेड़ो की छाया में करेंगे कभी आराम भी
कहीं कोई कुआँ प्यास भुजाएगा
तो कहीं कोई नदी की शीतल धारा
बहायेगी हमें अपने संग
कहीं मिला होगा कोई जंगली जानवर
और शायद कहीं मिल जाए कोई शिकारी
पर न रुकेंगे ये कदम
पैरों में पड़े छाले बताते हैं कितने
पथ में कितने कांटे होंगे
कठिन होगा आगे चलना
पर रास्ता यही तो कहलाता जीवन !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!

बदलता मौसम





मौसम बदल रहा है
और मिजाज़ भी
हल्की ठण्ड जहाँ शरीर में सिरहन पैदा कर रही है
वहीँ तुम्हारा चुप रहना मेरे मन को चीरे जा रहा है
सर्द मौसम की शुरुआत में मानो
तुम्हारी गर्माहट भी कम होती जा रही है
ठंडी हवाएं भी शुरू हो गयी
और तेरी दूरियां भी बढ़ती जा रही हैं
मैं न तो इस बदलते मौसम को रोक पा रही हूँ
और न ही तुझे थाम पा रही हूँ
न जाने क्यों एक एहसास है कहीं
सर्दी के बढ़ते बढ़ते जहाँ एक ओर कोहरा जमने लगेगा
वहीँ तेरे और मेरे बीच भी एक गहरा धुंधलापन सा छा जाएगा
जैसे किसी पर्वत पर बर्फ का गिरना होगा
वैसी ही तू भी शायद जमता चला जाएगा
नहीं पता था कि ऐसा एहसास हमारी पहली सर्दी ही मुझे करवाएगी
मैं तो उस ठण्ड के इंतज़ार में थी
जहाँ तेरी गर्माहट मुझसे लिपटेगी
जहाँ तू रजाई सा मुझे ओढ़ नींद में भी मुझे अपनी साँसों की गर्मी से संभाले होगा
न जाने कैसे तू इतना दूर हो गया
कैसे ये आने वाली सर्दियां भी तेरे बिछड़ने की दस्तक दे रही हैं
और मैं अभी से कांप रही हूँ उस जाड़े की सुबह को सोच कर
जहाँ तू बर्फ सा मेरे पास तो होगा
पर सूरज कि तरह कहीं बहुत दूर शायद दिखाई भी न पड़ेगा  !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!

रिश्तों की डोर



कच्चे धागों से रिश्ते
कभी बनते कभी बिगड़ते
हर दिन नयी पीड़ा में जलते
बचपन से देखा है इनको
कभी टूटते कभी बिखरते
जो कहलाते थे मेरे अपने
आज मुझे ही देख क्यूँ जल जल मरते
जा कर गले लगा लूँ सबको
हाथ जोड़ माफ़ी भी मांगू
गर हो सके तो पैरों में गिर जाऊं
बस एक बार फिर से लूँ मांग
उन बिखरे रिश्तों की वही पुरानी पहचान
कडवाहट और इर्ष्या लिए
क्रोध लालच से भरे हुए
चेहरों पर चेहरा चढ़ाये
अब ये रिश्ते अपने न रहे
याद करती हूँ जब जब
वो बिताये हुए हर एक पल
उम्मीद फिर दिख जाती
उन रिश्तों से मिलने कि कल
चाची मामी वो भाई बहिन
दादी के घर का वो आँगन
पलट पलट तकती हूँ सब
मेरे होकर भी सब कितने हैं दूर
बढ़ते कदम भी जाते अब डर
न जाने क्यों खोया सब कुछ
इन रिश्तों ने क्यूँ मुंह मोड़ लिया
क्यूँ मुझको खुद से दूर किया
फिर भी कोशिश करुँगी समेटने कि इन बिखरे से रिश्तों को
उस मन को सिलने की
उस कच्चे धागे को फिर जोड़ने कि
जो बांधेगा डोर इन रिश्तों कि
फिर होगी सच वो तस्वीर
जहाँ होंगे मेरे अपने मेरे बहुत करीब !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!

Saturday 17 October 2015

डायरी



डायरी के पन्नों को आज फिर पलटा है मैंने
कहीं खुद को सवाल करते
कहीं तुझको जवाब लिखते
कहीं इक दूजे से लड़ते
फिर देखा है मैंने
वो रोमांच वो बचपना
वो बेहिसाब हँसना खिलखिलाना
तुझसे कितने नए अक्षर लिखवाना
तेरे जवाब के इंतज़ार में
फिर नए सवालों को खोज लाना
तेरे नाम के नीचे खुद का नाम लिखना
तेरे हर शब्द को कई कई बार पढ़ डालना
तेरे जवाबों में खुद को यों देख पाना
देखा है आज
जब फिर डायरी के पन्नों को पलटा है मैंने !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!