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Saturday 17 October 2015

डायरी



डायरी के पन्नों को आज फिर पलटा है मैंने
कहीं खुद को सवाल करते
कहीं तुझको जवाब लिखते
कहीं इक दूजे से लड़ते
फिर देखा है मैंने
वो रोमांच वो बचपना
वो बेहिसाब हँसना खिलखिलाना
तुझसे कितने नए अक्षर लिखवाना
तेरे जवाब के इंतज़ार में
फिर नए सवालों को खोज लाना
तेरे नाम के नीचे खुद का नाम लिखना
तेरे हर शब्द को कई कई बार पढ़ डालना
तेरे जवाबों में खुद को यों देख पाना
देखा है आज
जब फिर डायरी के पन्नों को पलटा है मैंने !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!


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