मौसम बदल रहा है
और मिजाज़ भी
हल्की ठण्ड जहाँ
शरीर में सिरहन पैदा कर रही है
वहीँ तुम्हारा चुप
रहना मेरे मन को चीरे जा रहा है
सर्द मौसम की शुरुआत
में मानो
तुम्हारी गर्माहट भी
कम होती जा रही है
ठंडी हवाएं भी शुरू
हो गयी
और तेरी दूरियां भी
बढ़ती जा रही हैं
मैं न तो इस बदलते
मौसम को रोक पा रही हूँ
और न ही तुझे थाम पा
रही हूँ
न जाने क्यों एक
एहसास है कहीं
सर्दी के बढ़ते बढ़ते
जहाँ एक ओर कोहरा जमने लगेगा
वहीँ तेरे और मेरे
बीच भी एक गहरा धुंधलापन सा छा जाएगा
जैसे किसी पर्वत पर
बर्फ का गिरना होगा
वैसी ही तू भी शायद
जमता चला जाएगा
नहीं पता था कि ऐसा
एहसास हमारी पहली सर्दी ही मुझे करवाएगी
मैं तो उस ठण्ड के
इंतज़ार में थी
जहाँ तेरी गर्माहट
मुझसे लिपटेगी
जहाँ तू रजाई सा
मुझे ओढ़ नींद में भी मुझे अपनी साँसों की गर्मी से संभाले होगा
न जाने कैसे तू इतना
दूर हो गया
कैसे ये आने वाली
सर्दियां भी तेरे बिछड़ने की दस्तक दे रही हैं
और मैं अभी से कांप
रही हूँ उस जाड़े की सुबह को सोच कर
जहाँ तू बर्फ सा
मेरे पास तो होगा
पर सूरज कि तरह कहीं
बहुत दूर शायद दिखाई भी न पड़ेगा !!!!!!!!!!!
नीलम !!!!!!!!!!!
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