Followers

Thursday 15 October 2015

जल रही हैं.....



माचिस कि तीली सी भावनाए मेरी
जल कर तुरंत बुझ जाने वाली
दूसरों को प्रकाश दे
खुद को अन्धकार में धकेल देने वाली
रोज़ जलती रोज़ बुझती
पर कभी जीवित न रह पाती
कुछ क्षणों के लिए तो मानो ऐसी जलती
कि खुद ही के हाथ जला देती
और फिर बुझ जाती
और दे जाती अनगिनत से पलों का दर्द
कभी हर वक़्त आग कि तरह जलते रहना भी चाहत न थी
पर जलती थी रोज़
शायद रोज़ जलने से भी खुश थी
किसी और के जीवन में रोशनी कर
संतुष्ट थी
या बस अपनी आग को इकट्ठा कर
बना रही थी कोई ज्वालामुखी
ये भावनाए समझ गयी थी
उम्र इनकी बस माचिस कि तीली सी थी
और रोज़ जल कर बुझ जाना इनकी किस्मत थी
मेरी भावनाएं अब एक आग का गोला बन गयी हैं
मेरे ही भीतर हज़ारों माचिस कि तीलियों का घर बन गयी हैं
डरती हूँ कहीं कोई चिंगारी न छोड़ दे
और खुद के साथ साथ जला दूँ
मेरे आस पास के उन सभी लोगों को
जिन्हें मेरी भावनाएं देती थी रोशनी
बन माचिस कि एक तीली !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!!!

No comments:

Post a Comment