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Wednesday 14 October 2015

माँ

.माँ .........



सहेज कर रखी हैं मैंने
आज भी वो बचपन की यादें
माँ याद है कैसे सताती थी तुमको मैं
करके उलझी उलझी सी बातें
तुम जवाब देते देते झुंझला जाती
और मैं वहीँ रसोई में बैठे बैठे
तुम्हारे साथ आटे की छोटी छोटी लोई बनाती
कितनी बार तुम मुझे चूल्हे की आंच से बचाती
और खुद की उंगलियाँ ही जला लेती
मुझे याद है जब मैं तुम्हारी साड़ी के पल्लू से लटक जाती
सड़क पर थक के बैठ जाती
और तुम प्यार से मुझे गोद में उठा लेती
मुझे याद है जब मैंने खुद को ही
कमरे में बंद कर लिया था
तुम बाहर खड़ी रो रही थी
पर मुझे हिम्मत दे रही थी
और मैं समझ ही नहीं पा रही थी
बहुत सताया था
जब बिस्कुट वाला आया था
देख कर उसको मैंने कुण्डी खोल दी थी
और तुमने गले लगाया था
साथ ही बिस्कुट का ढेर दिलवाया था
सहेज के बैठी हूँ आज भी
उन बचपन की यादों को
माँ याद है जब स्कूल के रिक्शा से कूदी थी
और तुमने मुझको क्या मार मारी थी
बाद में पापा ने भी तुमको कूटी थी
आज समझ आया
जो तुम न होती
तो मैं यहाँ न होती
जब रात रात भर न सोती थी
तुम लोरी गाते गाते सोती थी
माँ मैं डर जाती थी
बस तेरी आवाज़ ही तो मुझे सुलाती थी
माँ याद है नौकरी का पहला दिन
जब तुमने मुझे डब्बे में आशीर्वाद और दिया था अपना सारा प्रेम
आज उस डब्बे ने देखो फिर रुलाया है
न तुम हो न कभी वो खाना खाया है
जब ब्याहा था तुमने मुझको
पता था न तुम्हे.... अब नहीं रहूंगी तेरी मैं
न सता पाउंगी और तुझको मैं
क्या इतनी बुरी थी  मैं
कि आज मिलने भी नहीं आती तुम
और मुझको भी नही बुलाती तुम
माँ याद आती है तेरी वो डांट तेरी वो मार
तुझे सताना तेरे साथ रात रात जाग कर बात करना
हँसना रोना , पापा की डांट खाना
घंटो तुझसे सर में तेल लगवाना
रात के २ बजे उठा कर खाना बनवाना
माँ क्या तुझे याद नहीं आती मैं
क्या नहीं याद आता तूझे मेरा सताना
तेरे बिन अधूरी अकेली हूँ माँ
फिर मुझे अपनी गोद में बैठा
और कर दे मुक्त इस जीवन के बोझ से
बस मुझे थाम और ले चल कहीं दूर यहाँ से ..... !!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!



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