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Sunday 4 October 2015

बुद्धू चिड़िया



ये चिड़िया कितनी बुद्धू है
मेरी खिड़की पर इसका घर है
रोज़ झांकती है अन्दर
समझती नहीं
मुझे देख उड़ जाती है
शायद उसे नहीं पता मैं भी तो एक चिड़िया हूँ
बस पर नहीं है, काट लिए इन लोगों ने
ये चिड़िया कितनी बुद्धू है
समझती ही नहीं
हाँ
इतना तो है कि मैं इस से जलती हूँ
देख देख इसके पर अन्दर ही अन्दर कुढ़ती हूँ
उड़ नहीं सकती इस जैसे
यही सोच आसमां को तकती हूँ
क्यूँ इसे मिला ये खुला गगन
और मुझे कर रखा है सलाखों में बंद
क्यूँ इसका आकाश बड़ा है
और ऊँची हैं मेरे घर की दीवार
ये चिड़िया कितनी बुद्धू है
समझती ही नहीं
इसका घोंसला छोटा है पर ये तो है आज़ाद
घर मेरा बड़ा है पर उसमे कैद हूँ मैं आज
बारिश में भीग कर भी ये है खुश
और आंसू मेरे बारिश में जाते कहीं छुप
फर्क इतना ही है बस
इसके अरमानों को मिल गए पंख
और मैं रह गयी अपंग
ये चिड़िया कितनी बुद्धू है समझती ही नहीं!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!!




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