ये चिड़िया कितनी
बुद्धू है
मेरी खिड़की पर इसका
घर है
रोज़ झांकती है अन्दर
समझती नहीं
मुझे देख उड़ जाती है
शायद उसे नहीं पता
मैं भी तो एक चिड़िया हूँ
बस पर नहीं है, काट
लिए इन लोगों ने
ये चिड़िया कितनी
बुद्धू है
समझती ही नहीं
हाँ
इतना तो है कि मैं
इस से जलती हूँ
देख देख इसके पर
अन्दर ही अन्दर कुढ़ती हूँ
उड़ नहीं सकती इस
जैसे
यही सोच आसमां को तकती
हूँ
क्यूँ इसे मिला ये
खुला गगन
और मुझे कर रखा है
सलाखों में बंद
क्यूँ इसका आकाश बड़ा
है
और ऊँची हैं मेरे घर
की दीवार
ये चिड़िया कितनी
बुद्धू है
समझती ही नहीं
इसका घोंसला छोटा है
पर ये तो है आज़ाद
घर मेरा बड़ा है पर
उसमे कैद हूँ मैं आज
बारिश में भीग कर भी
ये है खुश
और आंसू मेरे बारिश
में जाते कहीं छुप
फर्क इतना ही है बस
इसके अरमानों को मिल
गए पंख
और मैं रह गयी अपंग
ये चिड़िया कितनी
बुद्धू है समझती ही नहीं!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!!
No comments:
Post a Comment