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Sunday 6 September 2015

वो सड़क



वो सड़क जो चलती जा रही है
जंगलों के बीच नदियों को पार कर
पहाड़ों में भी अपने आप को संभाले
अकेली , दूसरों को रास्ता दिखाती
चली जा रही हैं मानो सब को अपने साथ लिए
न कोई भय है न कोई संकोच
निडर अपनी खुद की पहचान बनाते
वो सड़क जो चलती जा रही है
रेगिस्तान को पार कर
संकरी गलियों के बीच
अपना रास्ता बनाते हुए
दूसरों को रास्ता दिखाती
उन यादों को समेटें
जहाँ कभी कोई न कोई  इसका भी हुआ होगा
बातें की होंगी कहीं रुक कर
इसके भरोसे पर भरोसा भी किया होगा
और चलते गए होंगे दोनों एक दुसरे के साथ मीलों
वो सड़क जो चलती जा रही है अकेले
न जाने
किनारे खड़े बरगद की कितनी कहानियाँ जानती होगी
नदियों की गहराईयों को भी पहचानती होगी
उन पहाड़ों की ठंडक और रेगिस्तान की रेत की तपिश
का अनुभव भी होगा इसे
कितने लोगों के गहरे राजों की हमराज़ रही होगी
कितने जंगलों में रात अकेले ही गुजारी होगी
उन जंगली पशुओं की मित्र भी रही होगी
उस गहरे अन्धकार में शशि की रोशनी में चमकी भी होगी
किसी को मंजिल तक पहुँचाने की ख़ुशी में वो भी खुश हुयी होगी
वो सड़क जो चलती जा रही है अकेले
कभी तो किसी के साथ वो भी रही होगी ..........!!!!!!!! नीलम

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