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Wednesday 16 September 2015

मेरा गाँव

 ऊँचे से घर ऊँची सी अटारियां
सड़के और गलियाँ

मोर का नाचना और दूध की वो बाल्टियां
घूंघट से ढके वो चेहरे हुक्के की वो गुड़गुडाहट
मिटटी की वो सौंधी सी खुशबु
घरो से निकलता चूल्हे का वो धुआं
पीपल का वो सुबह ही महफ़िलों से सज जाना
खेतों की हरियाली
मटकों से भरा वो कुआं
गायों का वो खेतों में चरना
बिन चप्पल पैरों का वो धुप में जल जाना
दादी का दूध बिलोना
माँ की डांट से डर गन्नो के खेत में छुप जाना
बुआ को हर पल सताना
माखन दही की हांडी तोड़ना
एक आने का वो गुड़ खरीदना
रोटी प्याज भर पेट खाना
शाम को मदिर की घंटियों पर लटक जाना
रातों को छत पे लेट आसमां में तारे गिनना
दादी की कहानियाँ सुन वो सपने बुनना
न भय न डर
आँगन में बेफिक्र चारपाई डाल सोना
न कोई फ़िक्र न कोई चिंता
ज़िन्दगी का वो हर पल बस खुश रहना

यही तो था कभी गाँव मेरा !!!!!!!!!!!!! नीलम

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