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Friday 18 September 2015

मोहन तुम

कल फिर आये थे मोहन तुम
मुझको फिर पूरा कर अधूरा छोड़ने
तेरी बांसुरी की धुन
नाच रही है अब भी यहीं
मैं भी आँखें मीच हो गयी हूँ मग्न

रोज़ की तरह फिर छोड़ गए हो
अपना कुछ सामान तुम
पता है मुझको
बहाने ढूंडते फिर आओगे आज तुम

फिर मैं राधा जैसे इठलाऊंगी
तेरे बांसुरी में फिर खो जाउंगी
छुओगे मुझको फिर एक बार जो तुम
हो जाउंगी मैं फिर कहीं गुम

राधा राधा जब तुम कहते
मोहन तुम मुझको मोह लेते

नहीं पता कैसा तेरा ये मन
लौटते ही क्यूँ हो फिर आने को तुम

यहीं रुको मत जाओ तुम
बना लो मुझको भी अपनी बांसुरी की कोई धुन
होंठो से लगाये रखो
ये राधा जो बहुत अधूरी तुम बिन
मोहन  होती पूरी तेरे ही संग !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!

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