आज दिन भी डरावने
हैं और रातें भी
पर तेरे लिए नहीं
तू तो ये हक लेकर
पैदा हुआ है
सड़क पर लार टपकाते
सियार जैसे चलने का
तुझे नंगा कर भी दो
तो
तुझे गर्व होगा अपनी
मर्दानगी पर
मुझे नंगा करोगे तब
भी तो गर्व ही करोगे अपनी मर्दानगी पर
तुम रोज़ मुझे नचाते
हो उँगलियों पर
यही तो साबित करता
है तुम्हारा मर्द होना
नहीं तो नामर्द न
कहलाओगे
रोज़ हर रोज़ अगर मुझे
न डराओगे
मेरी चीखों पर न
हंसोगे
मेरे बचपन को न
चुराओगे
मेरा सर्वस्व न छीन
लोगे
तब तक कहाँ से मर्द
कहलाओगे
जिस मंदिर में तुम
जाते हो
मेरे भगवान् के
सामने ही,,,, मुझे गिराते हो
मंदिर की सीढियों पर
भी
मेरे आँचल के फिसलने
का इंतज़ार करते हो
मैं कर बैठूं किसी
से प्यार तो ,
मेरे बाप भाई होकर
भी मुझे काट गिराते हो
तुम तो ये हक लेकर
पैदा हुए हो !!!!
जिस स्त्री से रोज़
अपनी भूख मिटाते हो
उस में पल रही मैं
को मार गिराते हो ,
अंश तुम्हारा ही तो
थी
मुझी से क्यूँ आँख
चुराते हो
अपने मर्द होने की
सच्चाई क्यूँ देख ही नहीं पाते हो
गलियों बाजारों घरों
में हर जगह तो तुम हो
गिद्धों की तरह
मंडराते
ढूँढ रहे हो मौका
फिर से
अपने मर्द होने को
साबित करने का..........!!!!!! नीलम
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