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Thursday 10 September 2015

एक ऐसा भी था प्यार

!!!!! एक ऐसा भी था प्यार !!!!!!

अपने इतराने पर नाज़ था मुझको
अपने इतराने पर नाज़ था मुझको

अपनी मुस्कराहट के असर का भी एहसास था मुझको
अपनी चोटी में लगे फूलों कि खुशबु से
तुझे पागल कर दूँ इसका भी अंदाज़ा था मुझे
मेरी बाहों में भर मदहोश कर दूँ इसका भी वहम था मुझे
और अब मेरा बन गया है तू इसका भी ऐतबार था मुझे


पर ये क्या कर गया तू आज ?


तोड़ डाला मेरा ऐतबार और ख़त्म कर दिए सारे एहसास
ऐसे किये टुकड़े मेरे
के खो दिया मैंने खुद पर से विश्वास

और मेरे होने पर भी उठ गए सवाल................
एक सवाल आज मेरा भी है तुझसे
क्या न कर पाई मैं तेरे लिए ?

जो तूने किया ये विश्वासघात...............

तूने चाहा तो मैं बनी राधा भी
सीता के तरह त्यागा भी सब कुछ
मेनका बन तुझको रिझाया भी
मीरा जैसी तेरी प्रेम भक्ति भी की

पर समझ न पाई क्या तुझको न भाया
लगता है मानो
मेरा मुझ सा होना तू संभाल न पाया

अपने वादों से शायद डर गया तू
गया मुझको छल
और मेरा होना ही गलत कह गया तू?

मेरे चेहरे को देख ही तू आया था पास
की थी लाख तारीफें मेरी
बांधे ते प्रशंसा के कई बाँध
गर्व था मेरी पहचान पे तुझको

तो क्यूँ न झाँक पाया तू मेरे चेहरे के उसके पार
मेरा दिल पत्थर का नहीं
जो तू मार गया चोट इतनी गहरी
क्यों न देख पाया वो आंसू जो थे कभी लबों की मुस्कान
ऐ पत्थर दिल तू भी निकला इस सारे जग के ही समान !!!!!!!!!!!!!!!!

नीलम

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