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Monday 14 September 2015

मन



मन

क्या होता है मन ? जो देता कर्मों को निर्देश .... ये अच्छा ये बुरा ये सच्चा ये झूठा , ये सही और ये गलत कैसे बतला देता है ये मन ?
अचेत मन यही कहता है बार बार , क्या हम अपने कर्मों का सच्चा कारण दे पाए खुद को भी एक बार, नींद में बने स्वप्नों के जो ताने बाने, मजबूर करते हैं करने पर विचार और जानते हैं कि हिमशैल सा है अपना मन , उसी का सतह पे रहता एक हिस्सा जो केन्द्रित है करने में बस आज का कर्म , फिर एक सिरा है अग्र्चेतन का जो यादों की पुन: प्राप्ति में है कहीं गुम, फिर है इस मन बेसुध सा एक अर्थपूर्ण क्षेत्र, जो निरंतर लगा रहता है प्रक्रियायों में हमारी गतिविधियों के ढूँढने वास्तविक कारण, ये बेसुध सा मन है देगची जैसे कोष सा जो प्रार्थमिक इच्छाओं की लालसाओं से भरा, पड़ा है किसी खाड़ी पर जिनका गलत होना मजबूर करता है अग्र्चेतन मन को करने उनका दमन !!!!!! यही तो है जो बंटा है तीन हिस्सों में और कारण है हमारे हर कर्म का, पर अंत में यही है कहना मन तुझे  समझना सबसे कठिन  !!!!!!!! नीलम !!!!!!!

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