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Sunday 6 September 2015

उलझी सी तेरी बातें



शब्दों कि कठिनता में मत उलझाओ मुझे, अपनी बातों में मत अटकाओ मुझे
सरलता से बताओ , कहो जो कहना है
सुनूंगी और समझने कि कोशिश भी करुँगी
क्यों इन कठिन शब्दों को प्यार में लपेट कर एक थप्पड़ की तरह रसीद देते हो मेरे गाल पे
पता है कोई जवाब नहीं दे पाउंगी
और जब तुम्हारी ये उलझी बातें समझ ही नहीं आती तो जवाब भी क्या दूँ
गलत सही जो भी है साफ़ साफ़ बोलो
मेरे दर्द कि चिंता न करो , चिंता होती तो ये उलझी बातें ही न करते
नहीं समझ पाओगे कि एक बार मारना बेह्तर है
मंदता से मारोगे तो प्राण निकलने में वक़्त लगेगा
और मेरे साथ होने का कष्ट तुम्हे सहना पड़ेगा,
प्यार कि गहराईयों को नापते नापते आज लगता है
मैं तुम्हें तो जान ही नहीं पायी
तुमने अपने नकलीपन का एहसास ही नहीं होने दिया,
और मैं तुम्हे अपना सच समझ बैठी ,
मुझे मुझमे ही उलझाकर आज तुम मुझसे निकल गए
जो कहना है अब तो साफ़ साफ़ कहो
नहीं समझ आती तुम्हारी ये नकली उलझी सी बातें !!!!!!!!!!!!!!!

! नीलम !



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