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Monday 28 September 2015

प्रेम पत्र



----प्रेम पत्र -----

सुबह आँख खुली, तो तेरी साँसों को अपने लबों से टकराते सुना, तेरा मासूम सा चेहरा मेरे चेहरे पर यूँ रखा था मानो कोई बच्चा माँ से लिपट कर सो रहा हो, प्रेमिका की तरह रात भर तू मुझे बाहों में ले सुला रहा था और अब सुबह मुझे लगा मानो मेरा प्यार ममता में बदल गया हो , तुझे गले से लगा संभाल मैं ऐसे पड़ी थी मानो मेरा पूरा संसार बस इसी पल में सिमट गया हो और तू भी सुकून से सो रहा था जैसे आज की नींद जीवन भर की थकान मिटा रही हो, मन तो हो रहा था कि तुझे नींद से जगा फिर तेरी प्रेमिका बन जाऊं, पर ये सुबह शरारत करने का मन ही नहीं हुआ, तेरी बंद आँखें मेरे प्यार को और मज़बूत बना रही थी, तेरी मज़बूत बाहें जो लापरवाही से मेरी गर्दन पर पड़ी थी मुझे रोक रही थी, बिस्तर से उठने का मन ही नहीं था,जब भी कोशिश करती तू नींद में ही रोक लेता , धीरे से मैं भी वापस तुझे सीने से लगाए चुप चाप तुझे देख रही थी, तेरा हर अंग मुझे छु रहा था , मेरे शरीर का एक एक हिस्सा मानो तुझ में समां गया हो , तेरी कमीज़ दरवाज़े पर टंगी मानो छेड़ रही हो मुझे, मेरे कपड़े जो रात को ही कहीं लुक्का छुप्पी के खेल में छुप गए थे , झाँक रहे थे , मैंने कहा मैं हार गयी अब नहीं ढून्दुंगी रहने दो,  और मैं महसूस कर रही थी उस छूहन की गर्माहट को, काश हर सुबह इतनी ही सुन्दर हो, यही सोच रही हूँ , तू मुझसे यूँ ही लिपटा रहे आँख खुले तो कभी मेरा प्यार बने और कभी छोटा सा बच्चा, सुबह की चाय का इंतज़ार था मुझे ,ताकि उठ कर कुछ पढ़ सकूँ या फिर तेरा होना किसी पन्ने पर लिख डालूं , आज कल मेरी हर अभिव्यक्ती का किरदार तू ही है, प्यार से परिपूर्ण करने वाले मेरे इस जीवन का आधार भी तू ही है, नहीं जानती कल का सूरज क्या लाएगा , पर तुझ से सट कर बैठे रहना तेरी बातें सुनते रहना और तेरा चेहरा देखते रहना बस यही चाहत है अब, लोगों से बिना डरे रोज़ तू मुझसे मिले मेरी हर परेशानी तेरी मुस्कराहट दूर करती रहे, मैं भी बस तुझे यूँ ही सम्भाल बैठी रहूँ , तेरा हँसना तेरा रोना तेरा हर गम और ख़ुशी बस बांटती रहूँ, और हर सुबह तू मेरे कानों में धीरे से कहे , तुम मेरी हो बस मेरी और मैं तुम्हारी हो जाने की चाहत में फिर एक बार तुम्हारे शरीर और आत्मा से लिपट जाऊं. तेरे बालों में हाथ डाले जब मैं तेरा माथा चूम रही थी तो लगा मानो सुबह की पहली किरण को देखा हो , कितना तेज है तेरे चेहरे पे, तू चमक रहा है और मुझे भी रोशनी से भर रहा है, तेरी उंगलियाँ जो बेपरवाही से मेरे शरीर को छु रही हैं उन किरणों से कम नहीं जो रोज़ खिड़की से झाँक हमारे कमरे को उजाले से भर देती हैं , और मैं भी तेरी इन लापरवाह सी शरारतों में उलझ जाती हूँ खुद को तेरे और करीब ले आती हूँ, तेरा स्पर्श किसी जादू सा है , जो मुझे तुझमे खो जाने के लिए मजबूर करता है, पूरी रात तेरी साँसों ने मेरी नींद को पूरा किया और अब तेरी ये नींद मुझे जागने ही नहीं दे रही, रात जब तूने मुझे छूआ मुझे सीने से लगा फिर मुझे अपनी ओर खींचा और अपने होंठों से मेरे शरीर को चूमा , धीरे धीरे मेरी आँखें बंद हुयी , तेरी हर कामना को पूरा करने की चाहत ने मुझे तेरे हाथों को रोकने ही नहीं दिया , बत्ती बुझा जब तूने मुझे चादर ओढ़ाई और मुझे अपने तन में भर लिया , लगा ये रात कभी ख़तम ही न हो और बस यूँ ही मैं तुझ में समाई रहूँ और तू मुझे चूमता रहे , और आज कि सुबह को भी लगता है यहीं रोक लूँ , रोज़ हर रात और सुबह बस तेरे नाम कर दूँ , पता नहीं तू जानता है या नहीं , पर तेरा शरीर जरिया बन गया है मुझे प्यार के करीब लाने को, जो एहसास कभी किसी के साथ नहीं हुआ आज लगता है मानो समंदर में आये तूफ़ान की तरह उमड़ रहा हो. शायद कभी तू समझ सके की इस एहसास की गहराई मुझे तेरा बनाते जा रही है , तेरी जिन्दगी के हर पल में तेरा होने को कह रही है, तू भी करता है न मुझ से ऐसा प्यार , तुझ में भी क्या हैं यही एहसास ? न जाने अभी भी जब तुझसे लिपटी पड़ी मैं ये सोच रही हूँ , तेरे मन में क्या चल रहा होगा ?
एक बार तेरे मुंह से सुनना चाहती हूँ हर रोज़ की सुनो तुम मेरी हो बस मेरी.....
अब चाय ला रही हूँ यही सोचा था, पर तेरी बाजुओं ने फिर रोक लिया  , अब तुम्हे उठाना पड़ेगा , फिर सुबह की पहली किरण की तरह तुझे खुद में समाने के लिए... तेरे हाथों को महसूस करने के लिए, पर नहीं तुम सोते रहो मैं तुम्हे जाने ही नहीं देना चाहती, मेरा तकिया चादर भी अब मुझसे नाराज़ हो गए हैं , चलो नहीं करती तुम्हे तंग, जब उठोगे तब बताउंगी की तुमसे कितना प्यार करती हूँ....................  

सिर्फ तुम्हारी

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