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Saturday 3 October 2015

चली गयी .... मैं भी !!!!!!!!!!!



तुम्हारे मेरी ओर बढ़ते कदम
करीब आते आते रुक गए
लगा मानो धरती और आकाश मिलते मिलते रुक गए
कहीं दूर से तुम्हे किसी ने पुकारा
और तुम लौट गए
मेरे इतना करीब हो कर भी मेरी आवाज़ न सुन पाए
और जिसने मीलों दूर से पुकारा
उसके साथ चलने निकल पड़े
मैंने भी आवाज़ दी थी
पर तुमको हम सुनायी ही नहीं पड़े
क्यों दुनिया कि आवाज़ तुम्हे मेरा होने ही नहीं देती
क्यूँ उनके शब्दों पर मुझसे ज्यादा भरोसा है तुम्हे
क्या मुझसे ज्यादा प्यार करते हैं वो तुम्हे
या मेरा प्यार दिखा ही नहीं कभी तुम्हे
या मुझे न खोने के विश्वास ने दूर कर दिया तुम्हे
नहीं जाउंगी कहीं.... सोच पास आने से रोक दिया तुम्हे
अब वो पहले और मैं बाद में
क्या याद नहीं आती तुम्हे
सोचते नहीं मैं सिर्फ तुम्हे सोच के लेती हूँ साँसे
बताया तो था भूल गए
या याद है सिर्फ वही जो दूर से पुकार लेते हैं तुम्हे
और तुम फिर रुक जाते हो मेरे पास आते आते
भूल रहे हो एक बात
ये भी दिलाया था याद
इतना दूर न जाना कि
शायद मैं ही न दोबारा लौट के आ पाऊं तुम्हारे पास
लो आज मैं भी तुम में से निकल गयी
किसी ने पुकारा और मैं भी चली गयी   !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!!!


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