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Sunday 4 October 2015

जनाज़े और ज़िंदगी



जनाज़े यों ही नहीं चलते
साथ तुमको हमको भी ले चलते हैं
दिखाने वो सच जिसे जान कर भी हैं हम अनजाने
मिट्टी वो भी हो चले
और मिट्टी तुम्हे भी होना है
बस कब्र तक तुम छोड़ आये
अन्दर तो वो अकेले ही रह गए
फ़ना सब को होना है इक दिन
ये जानकार भी क्यूँ न समझ पाए
ख्वाहिशें पूरी करने की ख्वाहिश में
हम खुदा से ही दूर हो गए
कब्रिस्तान से नज़रें चुरा लेते हैं
कभी कब्रों से बात करके क्यों नहीं जानते
अल्लाह मस्जिद में है
उनसे पूछो जो कब्र में अल्लाह को पा गए
ज़िन्दगी शमा है जल ही जायेगी
बस फर्क इतना है कि ज़िन्दगी में इन्सा रोज़ मरता है
और मौत में एक बार
सही फरमाएं तो ज़िन्दगी चलेगी
तो जनाज़े भी उठेंगे
न ज़िन्दगी थमेगी
न जनाज़े रुकेंगे !!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!

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