कच्चे धागों से
रिश्ते
कभी बनते कभी बिगड़ते
हर दिन नयी पीड़ा में
जलते
बचपन से देखा है
इनको
कभी टूटते कभी
बिखरते
जो कहलाते थे मेरे
अपने
आज मुझे ही देख क्यूँ
जल जल मरते
जा कर गले लगा लूँ
सबको
हाथ जोड़ माफ़ी भी
मांगू
गर हो सके तो पैरों
में गिर जाऊं
बस एक बार फिर से
लूँ मांग
उन बिखरे रिश्तों की
वही पुरानी पहचान
कडवाहट और इर्ष्या
लिए
क्रोध लालच से भरे
हुए
चेहरों पर चेहरा
चढ़ाये
अब ये रिश्ते अपने न
रहे
याद करती हूँ जब जब
वो बिताये हुए हर एक
पल
उम्मीद फिर दिख जाती
उन रिश्तों से मिलने
कि कल
चाची मामी वो भाई
बहिन
दादी के घर का वो
आँगन
पलट पलट तकती हूँ सब
मेरे होकर भी सब
कितने हैं दूर
बढ़ते कदम भी जाते अब
डर
न जाने क्यों खोया
सब कुछ
इन रिश्तों ने क्यूँ
मुंह मोड़ लिया
क्यूँ मुझको खुद से
दूर किया
फिर भी कोशिश करुँगी
समेटने कि इन बिखरे से रिश्तों को
उस मन को सिलने की
उस कच्चे धागे को
फिर जोड़ने कि
जो बांधेगा डोर इन
रिश्तों कि
फिर होगी सच वो
तस्वीर
जहाँ होंगे मेरे
अपने मेरे बहुत करीब !!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!
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