हवन की अग्नि की तरह
उस हवन कुंड में
जल जल शुद्ध होती
मैं
हवा में महकती उस
हवन की खुशबू की तरह
मेरी देह भी महकती
रहती
कईयों की भक्ति बनती
मैं
स्वाहा होती न जाने
कितने हाथों से मैं
जल जल शुद्ध होती
मैं
न जाने कितने
मन्त्रों में बंधी
न जाने किस किस के
मतलब के लिए जली
अच्छाई बुराई दोनों
के लिए स्वाह हुयी मैं
कभी साधुवाद पाती तो
कभी श्रद्धा नमन
हवन की अग्नि की तरह
उस हवन कुंड में
जल जल शुद्ध होती
मैं !!!!!!!!!! नीलम !!!!
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