खाली स्थान
एक दायीं तरफ एक
बाईं तरफ मुंह पलटाये
बिस्तर के अलग अलग
छोर पर
सर को तकिये में
छुपाये
आपस के खाली स्थान
को कभी जान ही न पाए
साथ रहते रहते भी
फासले इतने हो गए
कि बिस्तर के बीच न
जाने कैसे
और कब खाली स्थान पड
गए
कभी भरने की न सोच
पाए
कभी पहचान ही न पाए
बस पड़े रहे मुंह
पलटाये
थके हारे अपनी ही
जिंदगी की दौड़ में
जाने कब कदम इनके लडखडाये
न वो संभले न ये
संभल पाए
बस हर पल खाली स्थान
बढ़ाये
आज भी एक ही घर है
इनका
एक ही छत के नीचे
रहते
वही कमरा वही रसोई
और आज भी साथ ही खाते
मगर आपस में अब
बची न कोई कहने को
बात
टीवी के चैनल बदलते
कभी फ़ोन पर घंटो
दफ्तर में बात करते
न जाने कब रात के
अँधेरे में
आँख मूँद बिना मिले
ही सो जाते
सुबह उठ.... भागते
से
फिर लड़ने नयी लड़ाई
निकल जाते
पर आपस के खाली
स्थान को कभी भर ही न पाते ..... नीलम .......
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