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Thursday 14 January 2016

बेहोश


   बेहोश

बेहोश सी मैं
चेतना में भी अचेत
सूखे गले से पानी को ताकती
किसी कूएं में जा गिरने के ख्याल से डर जाती
बेहोश सी मैं
थकी हुयी बिस्तर को ताकती
फिर किसी चिता में जल जाने के डर से भागती
चेतनाशुन्य
भूख से तिलमिलाती
रोटी को खाने के लिए हाथ बढाती
फिर किसी का शिकार होने से घबरा जाती
बेहोश सी मैं
न जाने क्यूँ चेतना में भी अचेत सी पडी रह जाती ............ नीलम.............




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