लड़ रही हूँ
सुबह से जागी हूँ
कई ख़याल हैं
आते जाते
कभी तुझसे दूर होने
का सोचती
तो कभी तुझे माफ़ ही कर
देती
तू अल्पकालिक है
जानते हुए भी
तुझ से दूर होने के
लिए
एक अंतर्द्वंद चल
रहा है
एक भावना की
अभिव्यक्ती बन
जूझ रहा है
कहीं किसी कोने में
तेरा होना मुझे अखर
रहा है
और कहीं से आवाज़ आ
रही
तुझे अपने आप से जोड़े
रखने के लिए
सुबह से जागी
बस खयालों में ही लड़
रहीं
कभी खुद से
कभी तुझ से
और कभी उस भावना से .......
नीलम ........
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