ख्वाब
बुनते उधड़ते न जाने ज़हन
में कब पलते
ये ख्वाब रोज़ न जाने
कहाँ से पनपते
कभी दिल कभी दिमाग
पर ऐसे हावी होते
रु ब रु सच्चाई से
होने ही न देते
उन्हीं ख़्वाबों में
से एक
मेरा ख्वाब तू भी है
सच्च नहीं है पर तू
है जो मेरा जीना है
घर की घंटी के बजते
ही तुझे देखना
रसोई में पूड़ियाँ तलते
भी तुझे सोचना
अलमारी से रोज़ कपडे
निकाल बिखेरना
काजल को मोटा कभी
पतला लगा तुझे रिझाना
हैरान हूँ खुद से
सोचा ही न था ख्वाब
को ऐसे जीना
तेरे होने का एहसास
और तेरे चले जाने का
भी ख़याल
है मेरे मन में
तू एक चपल चुलबुला
सा
पलक पर बैठा है अभी
न जाने कब किसी और
की पलक पर जा बैठे
तू एक ख्वाब है
न जाने कब किस कि नींद में जाग बैठे
मुझे भी जागते हुए
सोना सिखा दिया
तूने न जाने कैसे
ख्वाब को हकीकत बना दिया
मालूम है मुझे
दर्द भी पता है
सुन्दर से ख्वाब के
टूटने का डर भी है मुझे
फिर भी न जाने कितनी
रातें
इस ख्वाब के इंतज़ार
में जगने की चाह भी है मुझे......!!!!!!!!!!!! नीलम !!!!!!!!!!!!!
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